पानी की कहानी पाठ से क्या शिक्षा मिलती है
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विकासशील दुनिया में दस्त संबंधी बीमारियों से होने वाली 90% से अधिक मौतें आज 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होती हैं। कुपोषण, विशेष रूप से प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण जल-संबंधी दस्त वाली बीमारियों के साथ-साथ संक्रमण के प्रति बच्चों की प्रतिरोध क्षमता को कम कर सकती हैं। 2000-2003 में उप-सहाराई अफ्रीका में प्रति वर्ष पांच वर्ष से कम उम्र के 769,000 बच्चों की मौत अतिसारीय रोगों से हुई थी। उप-सहाराई क्षेत्र में जनसंख्या के केवल छत्तीस प्रतिशत लोगों तक स्वच्छता के समुचित साधनों की पहुंच के परिणाम स्वरूप प्रति दिन 2000 से अधिक बच्चों की जिंदगी छिन जाती है। दक्षिण एशिया में 2000-2003 में हर साल पाँच वर्ष से कम उम्र के 683,000 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हो गयी थी। इसी अवधि के दौरान विकसित देशों में पांच साल से कम उम्र के 700 बच्चों की मौत दस्त (अतिसार संबंधी) रोगों से हुई थी। बेहतर जल आपूर्ति दस्त संबंधी रोगों को पच्चीस-प्रतिशत तक कम कर देती है और घरों में समुचित भंडारण एवं क्लोरीनीकरण के जरिये पीने के पानी में सुधार से दस्त (डायरिया) के दौरे उनतालीस प्रतिशत तक कम हो जाते हैं।
आशा है इससे आपकी मदद होगी।
Explanation:
मैं आगे बढ़ा ही था कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद मेरे हाथ पर आ पड़ी। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि ओस की बूँद मेरी कलाई पर से सरक कर हथेली पर आ गई।
आश्चर्य का ठिकाना न रहा – हैरानी का अंत न होना
कलाई – हाथ का अगला हिस्सा
लेखक कहते हैं कि किसी काम से वह रास्ते पर जा रहे थे कि बेर की झाड़ी पर से मोती-सी एक बूँद लेखक के हाथों पर आ पड़ी। तो जब लेखक ने देखा कि ओंस की बूँद उनकी कलाई पर आकर गिर गई है और कलाई से सरक कर हथेली पर आ गई है तो ओंस की इस बूँद को देखकर वो हैरान हो उठे कि कोई बूँद पेड़ पर से आकर उनके हाथ पर कैसे गिर सकती है, यह जानने के लिए उनकी जिज्ञासा जाग उठी।
मेरी दृष्टि पड़ते ही वह ठहर गई। थोड़ी देर में मुझे सितार के तारों की-सी झंकार सुनाई देने लगी। मैंने सोचा कि कोई बजा रहा होगा। चारों ओर देखा। कोई नहीं।
दृष्टि – नज़र
जैसे ही लेखक की नज़र ओंस की बूंद पर पड़ी वह ठहर गई। थोड़ी देर में लेखक को सितार के तारों की तरह कुछ संगीत सा सुनाई देने लगा। लेखक ने सोचा कि कोई सितार बजा रहा होगा। उन्होंने चारों ओर देखा पर वहाँ कोई नहीं था जो सितार बजा रहा हो।
फिर अनुभव हुआ कि यह स्वर मेरी हथेली से निकल रहा है। ध्यान से देखने पर मालूम हुआ कि बूँद के दो कण हो गए हैं और वे दोनों हिल-हिलकर यह स्वर उत्पन्न कर रहे हैं मानो बोल रहे हों।
स्वर – आवाज
कण – बहुत छोटा अंश
लेखक को यह एहसास हुआ कि यह आवाज उन्हीं की हथेली से निकल रही है। ध्यान से देखने पर लेखक को मालूम हुआ कि जो उनकी हथेली पर एक बूँद गिरी थी अब वह दो हिस्से में बँट गई थी, और वे दोनों हिल-हिलकर ऐसी आवाज पैदा कर रही थी, ऐसा लग रहा था दोंनो बूँदे आपस में बातचीत कर रही हो।
उसी सुरीली आवाज़ में मैंने सुना- “सुनो, सुनो…’’ मैं चुप था।
फिर आवाज़ आई, “सुनो, सुनो।’’
अब मुझसे न रहा गया। मेरे मुख से निकल गया, “कहो, कहो।’’
सुरीली – मधुर ध्वनि
मुख – मुँह
अब लेखक को यह एहसास हुआ कि दो बूंदे मधुर ध्वनि में आपस में बातचीत कर रही हैं, उन्हें लग रहा था जैसे वो बूंदें उनसे कुछ कहना चाह रही है क्योंकि उन्हें सुनो, सुनो ऐसी आवाज आई, लेकिन लेखक ने कुछ नहीं कहा। फिर लेखक को दोबारा आवाज आई, सुनो, सुनो। अब लेखक से न रहा गया। अब उत्सुकता वश लेखक के मुँह से निकल गया, कहो, कहो।
ओस की बूँद मानो प्रसन्नता से हिली और बोली- ’’मैं ओस हूँ।’’
“जानता हूँ’’- मैंने कहा।
“लोग मुझे पानी कहते हैं, जल भी।’’
“मालूम है।’’
“मैं बेर के पेड़ में से आई हूँ।’’
मालूम – जानना
लेखक ने जैसे ही ओंस की बूंद से बात करने लगा ओस की बूँद मानो खुशी से हिली और बोली कि वह एक ओंस है। लेखक ने कहा कि उन्हें पता है कि वह ओंस है। ओंस ने आगे कहा कि लोग उसके इस रूप को पानी के नाम से भी जानते हैं और जल के नाम से भी। यह जानकारी ओंस ने जब लेखक को दी तो लेखक ने कहा कि उन्हें यह भी पहले से ही पता है। अब ओस की बूँद अपने बारे में बताती है कि वह लेखक की हथेली पर बेर के पेड़ से आई है।
“झूठी,’’ मैंने कहा और सोचा, ‘बेर के पेड़ से क्या पानी का फव्वारा निकलता है?’
बूँद फिर हिली। मानो मेरे अविश्वास से उसे दुख हुआ हो।
“सुनो मैं इस पेड़़ के पास की भूमि में बहुत दिनों से इधर-उधर घूम रही थी। मैं कणों का हृदय टटोलती फिरती थी कि एकाएक पकड़ी गई।’’
फव्वारा – पानी की ऊँची धारा
भूमि – धरती
टटोलती – ढूंढती
एकाएक – अचानक
जब ओंस की बूंद ने लेखक को बताया कि वह बेर की झाड़ी से उसके हाथ पर आई है तो लेखक ने उससे कहा कि वह झूठी है क्योंकि बेर के पेड़ पर कोई पानी की ऊँची धार नहीं है जो वह वहाँ थी और लेखक के हाथ पर आ गिरी। बूँद फिर हिली क्योंकि उसे लगा की लेखक को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ तो उसे इस बात का दुख भी हुआ। बूंद ने फिर कहा कि वह इस पेड़़ के पास की भूमि में बहुत दिनों से इधर-उधर घूम रही थी और कणों का हृदय जो टटोलती हुई ईधर-उधर फिर रही थी कि अचानक पकड़ी गई।
“कैसे,’’ मैंने पूछा।
“वह जो पेड़ तुम देखते हो न! वह ऊपर ही इतना बड़ा नहीं है, पृथ्वी में भी लगभग इतना ही बड़ा है। उसकी बड़ी जड़ें, छोटी जड़ें और जड़ों के रोएँ हैं। वे रोएँ बड़े निर्दयी होते हैं।
जड़ें – मूल
रोएँ – रेशेदार जड़
निर्दयी – जिनमें दया न हो