पानी की स्थायी कठोरया को दूर करने के लिए प्रयुक्त लवण का रासायनिक नाम और रासायनिक सूत्र
लिजिर-
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Explanation:
जीवन की गुणवत्ता में योगदान देने वाले तीन प्रमुख कारकों में पहला है उस वायु की शुद्धता जिसमें हम साँस लेते हैं, दूसरा, उस जल की शुद्धता जिसे हम पीने के लिये एवं दैनिक उपयोगों हेतु इस्तेमाल करते हैं तथा तीसरा उस पर्यावरण की शुद्धता जिसमें हम निवास करते हैं। यद्यपि ये तीनों कारक एक-दूसरे पर निर्भर हैं फिर भी जल सम्बन्धी समस्या को बहुत गम्भीर माना जाता है। जल प्रकृति में व्याप्त एक ऐसा अद्भुत पदार्थ है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जीवन सम्बन्धी सभी प्रक्रियाओं के लिये जल अतिउपयोगी है और पृथ्वी पर विद्यमान सभी रासायनिक पदार्थों में जल सर्वाधिक मात्रा में मौजूद है। प्रारम्भ में जल को एक तत्व के रूप में माना जाता था। हेनरी कैवेंडिश ने सन 1781 में दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग ऑक्सीजन के मिश्रण को दहनकर जल की प्रयोगशाला निर्माण विधि की पुष्टि की। तब से यह सत्यापित हो गया कि जल हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से बना एक यौगिक है जिसे रासायनिक सूत्र H2O द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
पृथ्वी की सतह करीब 71% जल से ढँकी है परन्तु इसका अधिकतर जल महासागरीय खारे पानी के रूप में है। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए पीने एवं दैनिक उपयोग के लिये शुद्ध जल की उपलब्धता एक चिन्ता का विषय है। वर्तमान में भी कई क्षेत्रों में जल की कमी महसूस की जा रही है। कुछ क्षेत्रों में वर्षाऋतु में जल की अत्यधिक मात्रा होती है तो वहीं दूसरी ऋतु में नहीं के बराबर होती है। दूसरे कई क्षेत्रों में उपलब्ध जल प्राकृतिक एवं मानवजनित प्रदूषण के फलस्वरूप उपयोग के काबिल ही नहीं है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग 97% भाग सागरीय खारे पानी के रूप में है जो सीधे तौर पर मानव के उपयोग में नहीं आता है। शेष करीब 3% जल, जो शुद्ध मीठे जल के रूप में व्याप्त है, का भी मानवोपयोगी कार्यों में सीधे ही उपयोग नहीं किया जा सकता है। ऐसा इसलिये क्योंकि इस जल का लगभग 68.7% भाग बर्फ एवं ग्लेशियर के रूप में, 30.1% भूमिगत जल के रूप में, 0.9% अन्य स्रोतों जैसे कि जलवाष्प आदि के रूप में है। उपलब्ध मीठे जल का मात्र 0.3% भाग ही सतह जल के रूप में है। इस सतह का जल का भी लगभग 87% भाग झीलों के रूप में, 11% भाग तालाब एवं पोखरों के रूप में और 2% भाग नदी जल के रूप में उपलब्ध है। इस प्रकार पृथ्वी पर पीने, स्नानादि एवं कृषिकार्य हेतु उपलब्ध शुद्ध मीठे जल की मात्रा, कुल जल मात्रा के 1% से भी कम है।