पानी की समस्या और उपाय essay on this topic
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पानी की समस्या पर निबंध।
हालांकि यह भी सत्य है कि पृथ्वी पर पीने योग्य जल की बहुत कमी है। ... पानी कि यह समस्या इतनी गहन इसलिए हुई क्योंकि लोगों ने पृथ्वी पर मौजूद जल के सभी स्रोतों को दूषित कर दिया है। जल प्रदूषित होने के कारण लोग इस जल का उपयोग नहीं कर सकते और जिस वजह से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
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Explanation:
जल संकट और भारत - आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत भी जल संकट से जूझ रहा है। यहाँ जल संकट की समस्या विकराल हो चुकी है। न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में बल्कि ग्रामीण अंचलों में भी जल संकट बढ़ा है। वर्तमान में 20 करोड़ भारतीयों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो पाता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में जहाँ पानी की कमी बढ़ी है, वहीं राज्यों के मध्य पानी से जुड़े विवाद भी गहराए हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण धरती की कोख सूख रही है। जहाँ मीठे पानी का प्रतिशत कम हुआ है वहीं जल की लवणीयता बढ़ने से भी समस्या विकट हुई है। भूगर्भीय जल का अनियंत्रित दोहन तथा इस पर बढ़ती हमारी निर्भरता पारम्परिक जलस्रोतों व जल तकनीकों की उपेक्षा तथा जल संरक्षण और प्रबन्ध की उन्नत व उपयोगी तकनीकों का अभाव, जल शिक्षा का अभाव, भारतीय संविधान में जल के मुद्दे का राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में रखा जाना, निवेश की कमी तथा सुचिंतित योजनाओं का अभाव आदि ऐसे अनेक कारण हैं जिसकी वजह से भारत में जल संकट बढ़ा है। भारत में जनसंख्या विस्फोट ने जहाँ अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं, वहीं पानी की कमी को भी बढ़ाया है। वर्तमान समय में देश की जनसंख्या प्रतिवर्ष 1.5 करोड़ प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में वर्ष 2050 तक भारत की जनसंख्या 150 से 180 करोड़ के बीच पहुँचने की सम्भावना है। ऐसे में जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना कितना दुरुह होगा, समझा जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि स्वतंत्रता के बाद प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 60 प्रतिशत की कमी आयी है।
जल संरक्षण एवं संचय के उपाय - जल जीवन का आधार है और यदि हमें जीवन को बचाना है तो जल संरक्षण और संचय के उपाय करने ही होंगे। जल की उपलब्धता घट रही है और मारामारी बढ़ रही है। ऐसे में संकट का सही समाधान खोजना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बनता है। यही हमारी राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी बनती है और हम अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से भी ऐसी ही जिम्मेदारी की अपेक्षा करते हैं। जल के स्रोत सीमित हैं। नये स्रोत हैं नहीं, ऐसे में जलस्रोतों को संरक्षित रखकर एवं जल का संचय कर हम जल संकट का मुकाबला कर सकते हैं। इसके लिये हमें अपनी भोगवादी प्रवित्तियों पर अंकुश लगाना पड़ेगा और जल के उपयोग में मितव्ययी बनना पड़ेगा। जलीय कुप्रबंधन को दूर कर भी हम इस समस्या से निपट सकते हैं। यदि वर्षाजल का समुचित संग्रह हो सके और जल के प्रत्येक बूँद को अनमोल मानकर उसका संरक्षण किया जाये तो कोई कारण नहीं है कि वैश्विक जल संकट का समाधान न प्राप्त किया जा सके। जल के संकट से निपटने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव यहाँ बिन्दुवार दिये जा रहे हैं-
1. प्रत्येक फसल के लिये ईष्टतम जल की आवश्यकता का निर्धारण किया जाना चाहिए तद्नुसार सिंचाई की योजना बनानी चाहिए। सिंचाई कार्यों के लिये स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई जैसे पानी की कम खपत वाली प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित करना चाहिए। कृषि में औसत व द्वितीयक गुणवत्ता वाले पानी के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, विशेष रूप से पानी के अभाव वाले क्षेत्रों में।
2. विभिन्न फसलों के लिये पानी की कम खपत वाले तथा अधिक पैदावार वाले बीजों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
3. जहाँ तक सम्भव हो ऐसे खाद्य उत्पादों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें पानी का कम प्रयोग होता है। खाद्य पदार्थों की अनावश्यक बर्बादी में कमी लाना भी आवश्यक है। विश्व में उत्पादित होने वाला लगभग 30 प्रतिशत खाना खाया नहीं जाता है और यह बेकार हो जाता है। इस प्रकार इसके उत्पादन में प्रयुक्त हुआ पानी भी व्यर्थ चला जाता है।
4. जल संकट से निपटने के लिये हमें वर्षाजल भण्डारण पर विशेष ध्यान देना होगा। वाष्पन या प्रवाह द्वारा जल खत्म होने से पूर्व सतह या उपसतह पर इसका संग्रह करने की तकनीक को वर्षाजल भण्डारण कहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तकनीक को न सिर्फ अधिकाधिक विकसित किया जाय बल्कि ज्यादा से ज्यादा अपनाया भी जाय। यह एक ऐसी आसान विधि है जिसमें न तो अतिरिक्त जगह की जरूरत होती है और न ही आबादी विस्थापन की। इससे मिट्टी का कटाव भी रुक जाता है तथा पर्यावरण भी संतुलित रहता है। बंद एवं बेकार पड़े कुँओं, पुनर्भरण पिट, पुनर्भरण खाई तथा पुनर्भरण शॉफ्ट आदि तरीकों से वर्षाजल का बेहतर संचय कर हम पानी की समस्या से उबर सकते हैं।
5. वर्षाजल प्रबंधन और मानसून प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाय और इससे जुड़े शोध कार्यों को प्रोत्साहित किया जाय। जल शिक्षा को अनिवार्य रूप