History, asked by ss2037497, 11 months ago

पानीपत में बाबर की युद्ध रणनीति क्या थी​

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Answered by sparshu01
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Explanation:

पानीपत की प्रथम लड़ाई

पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी और मुगल शासक बाबर के बीच हुई। इब्राहीम लोदी अपने पिता सिकन्दर लोदी की नवम्बर, 1517 में मृत्यु के उपरांत दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुआ। इस दौरान देश अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों ने अफगानी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए लालायित कर दिया। उसने 5 जनवरी, 1526 को अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए अपने कदम आगे बढ़ा दिए। जब इसकी सूचना सुल्तान इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए हिसार के शेखदार हमीद खाँ को सेना सहित मैदान में भेजा। बाबर ने हमीद खाँ का मुकाबला करने के लिए अपने पुत्र हुमायुं को भेज दिया। हुमायुं ने अपनी सूझबूझ और ताकत के बलपर 25 फरवरी, 1526 को अंबाला में हमीद खाँ को पराजित कर दिया।

इस जीत से उत्साहित होकर बाबर ने अपना सैन्य पड़ाव अंबाला के निकट शाहाबाद मारकंडा में डाल दिया और जासूसांे के जरिए पता लगा लिया कि सुल्तान की तरफ से दौलत खाँ लोदी सेना सहित उनकीं तरफ आ रहा है। बाबर ने दौलत खाँ लोदी का मुकाबला करने के लिए सेना की एक टुकड़ी के साथ मेहंदी ख्वाजा को भेजा। इसमें मेहंदी ख्वाजा की जीत हुई। इसके बाद बाबर ने सेना सहित सीधे दिल्ली का रूख कर लिया। सूचना पाकर इब्राहिम लोदी भी भारी सेना के साथ बाबर की टक्कर लेने के लिए चल पड़ा। दोनों योद्धा अपने भारी सैन्य बल के साथ पानीपत के मैदान पर 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आ डटे।

दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी

मुगल शासक बाबर

सैन्य बल के मामले में सुल्तान इब्राहिम लोदी का पलड़ा भारी था। ‘बाबरनामा’ के अनुसार बाबर की सेना में कुल 12,000 सैनिक शामिल थे। लेकिन, इतिहासकार मेजर डेविड के अनुसार यह संख्या 10,000 और कर्नल हेग के मुताबिक 25,000 थी। दूसरी तरफ, इब्राहिम की सेना में ‘बाबरनामा’ के अनुसार एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी शामिल थे। जबकि, जादुनाथ सरकार के मुताबिक 20,000 कुशल अश्वारोही सैनिक, 20,000 साधारण अश्वारोही सैनिक, 30,000 पैदल सैनिक और 1,000 हाथी सैनिक थे। बाबर की सेना में नवीनतम हथियार, तोपें और बंदूकें थीं। तोपें गाड़ियों में रखकर युद्ध स्थल पर लाकर प्रयोग की जाती थीं। सभी सैनिक पूर्ण रूप से कवच-युक्त एवं धनुष-बाण विद्या में एकदम निपुण थे। बाबर के कुशल नेतृत्व, सूझबूझ और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने सुल्तान इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। सुल्तान की सेना के प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। इससे गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का नितांत अभाव और सुल्तान की अदूरदर्शिता का अवगुण आड़े आ रहा था।

दोनों तरफ से सुनियोजित तरीके से एक-दूसरे पर भयंकर आक्रमण हुए। सुल्तान की रणनीतिक अकुशलता और बाबर की सूझबूझ भरी रणनीति ने युद्ध को अंतत: अंजाम तक पहुंचा दिया। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। इस लड़ाई के उपरांत लोदी वंश का अंत और मुगल वंश का आगाज हुआ। इतिहासकार प्रो. एस.एम.जाफर के अनुसार, “इस युद्ध से भारतीय इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ। लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई। इस नए वंश ने समय आने पर ऐसे प्रतिभाशाली तथा महान् शासकों को जन्म दिया, जिनकी छत्रछाया में भारत ने असाधारण उन्नति एवं महानता प्राप्त की।

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