पिन उनचास ‘ का क्या तात्पर्य है ?
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हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
तुलसीदास ने सुन्दर कांड में जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी तब लिखा है -
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।
अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।
इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है यह तुलसी दास जी ने नहीं लिखा पर वाल्मीकि रामायण में इसका सन्दर्भ आता है |
ऋषि कश्यप के दो पत्नियां दिति और अदिति थीं | अदिति से उन्होंने देवताओं को जन्म दिया और दिति से असुरों का जन्म हुआ | देवासुर संग्राम में देवताओं की पराजय के बाद समुद्र मंथन हुआ और उसमे प्राप्त अमृत से देवता अमर हो गए.| देवताओं ने फिर असुरों को पराजित करके उन्हें समाप्त कर दिया |दिति को अपने पुत्रों की मृत्यु से बहुत दुःख और क्रोध हुआ |उन्होंने अपने पति के पास जा कर कहा कि आपके पुत्रों ने मेरे पुत्रों का वध किया है , इस लिए तपस्या करके ऐसे पुत्र को प्राप्त करना चाहती हूँ जो इंद्र का वध कर सके | कश्यप ने कहा कि तुम्हे पहले 1000 वर्षों तक पवित्रता पूर्वक रहना होगा तब तुम मुझसे इंद्र का वध करने में समर्थ पुत्र प्राप्त कर लोगी |यह कह कर कश्यप ने दिति का स्पर्श किया और दिति भी प्रसन्न हो कर अपने पति के कहे अनुसार तप करने चली गयी | दिति को तप करता देख इंद्र भी उनकी सेवा करने लगे | जब तप समाप्ति में 1 वर्ष बाक़ी रहा तप दिति ने इंद्र से कहा कि एक वर्ष बाद जब तुम्हारे भाई का जन्म होगा तब वो तुम्हे मारने मे समर्थ होगा पर तुमने मेरी तप मे इतनी सेवा की है कि मैं उसे तुमको मारने के लिए न कहूंगी |
तुम दोनों मिलकर राज्य करना |इसके बाद दिति को दिन में झपकी आ गयी और उनका सर पैरों मे जा लगा जिससे उनका शरीर अपवित्र हो गया और तप भी भंग हो गया | इधर इंद्र को भी दिति के होने वाले पुत्र से पराजय की चिंता हो गयी थी और उन्होंने इस गर्भ को समाप्त करने का निश्चय किया |इंद्र ने इस गर्भ के 7 टुकड़े कर दिए | दिति के जगने पर जब उन्हें गर्भ के सात टुकड़े होने की बात पता चली तब उन्होंने इंद्र से कहा कि मेरे तप भंग होने के कारण ही मेरे गर्भ के टुकड़े हो गए हैं , इसमे तुम्हारा दोष नही है | दिति ने तब कहा कि टुकड़े होने के बाद भी मेरे गर्भ के ये टुकड़े हमेशा आकाश मे विचरण करेंगे और मरुत नाम से विख्यात होंगे | ये सातों मरुत के सात सात गण होंगे जो सात जगह विचरण कर सकते हैं और इस तरह कुल ४९ मरुत बन जाते हैं |
इन सात मरुतों के नाम हैं -
आवह, प्रवह,संवह ,उद्वह,विवह,परिवह,परावह
इनके सात सात गण निम्न जगह विचरण करते हैं -
ब्रह्मलोक , इन्द्रलोक ,अंतरिक्ष , भूलोक की पूर्व दिशा , भूलोक की पश्चिम दिशा , भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा
इस तरह से कुल ४९ मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते हैं |
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