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पुनर्जागरण काल में हुई वैज्ञानिक खोजों का वर्णन कीजिये
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पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है, “फिर से जागना”। 14वीं और 17वीं सदी के बीच यूरोप में जो सांस्कृतिक व धार्मिक प्रगति, आंदोलन तथा युद्ध हुए उन्हें ही पुनर्जागरण कहा जाता है। इसके फलस्वरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नवीन चेतना आई। यह आन्दोलन केवल पुराने ज्ञान के उद्धार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इस युग में कला, साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में नवीन प्रयोग हुए। नए अनुसंधान हुए और ज्ञान-प्राप्ति के नए-नए तरीके खोज निकाले गए। इसने परलोकवाद और धर्मवाद के स्थान पर मानववाद को प्रतिष्ठित किया।
Explanation:
पुनर्जागरण वह आन्दोलन था जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्र मध्ययुग से निकलकर आधुनिक युग के विचार और जीवन-शैली अपनाने लगे. यूरोप के निवासियों ने भौगोलिक, व्यापारिक, सामजिक तथा आध्यात्मिक क्षेत्रों में प्रगति की. इस युग में लोगों ने मध्यकालीन संकीर्णता छोड़कर स्वयं को नयी खोजों, नवीनतम विचारों तथा सामाजिक, सांस्कृतिक एवं बौद्धिक उन्नति से सुसज्जित किया. प्रत्येक क्षेत्र में सर्वथा नवीन दृष्टिकोण, आदर्श और आशा का संचार हुआ. साहित्य, कला, दर्शन, विज्ञान, वाणिज्य-व्यवसाय, समाज और राजनीति पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया. इस प्रकार पुनर्जागरण उस बौद्धिक आन्दोलन का नाम है जिसने रोम और यूनान की प्राचीन सभ्यता-संस्कृति का पुनरुद्धार कर नयी चेतना को जन्म दिया।
कागज़ तथा मुद्रण कला का आविष्कार:- पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) को आगे बढ़ाने में कागज़ और मुद्रणकला का योगदान महत्त्वपूर्ण था. कागज़ और मुद्रणकला के आविष्कार से पुस्तकों की छपाई बड़े पैमाने पर होने लगी. अब साधारण व्यक्ति भी सस्ती दर पर पुस्तकें खरीदकर पढ़ सकता था. पुस्तकें जनसाधारण की भाषा में लिखी जाती थी जिससे ज्ञान-विज्ञान का लाभ साधारण लोगों तक पहुँचने लगा. लोग विभिन्न विचारकों और दार्शनिकों के कृतित्व से अवगत होने लगे. उनमें बौद्धिक जागरूकता आई।
कला:- जिस प्रकार यूरोप के विद्वानों ने 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक प्राचीन रोमन एवं यूनानी साहित्य के प्रति बड़ी अभिरुचि दिखायी, उसी प्रकार कलाकारों एवं शिल्पियों ने भी प्राचीन ललित कलाओं से प्रेरणा प्राप्त की एवं संतति के लिए नये आदर्श से इसका विकास किया। मध्ययुगीन यूरोप की कला मुख्यतया ईसाई धर्म से संबंधित थी, परन्तु साहित्य एवं प्राचीन सभ्यता के प्रभाव स्वरूप पंद्रहवीं एवं सोलहवीं सदियों में यूरोपीय कला का महान रूपांतर व परिवर्द्धन हुआ। अब कला पर साहित्य व प्राचीनता की छाप स्पष्टतया दिखायी देने लगी एवं कला के सभी क्षेत्रों-ं स्थापत्य-कला, मूर्तिकला, चित्रकला एवं संगीत में प्राचीनता के आदर्श अपनाये जाने लगे एवं इनकी अद्वितीय उन्नति हुर्इ। मध्ययुग में जहाँ यूरोप में भाषाओं का प्रारंभिक विकास प्रारंभ हुआ, वहाँ साथ ही, इटली में कर्इ महत्वपूर्ण साहित्य की रचना हो चुकी थी, परंतु पंद्रहवीं सदी में इटालियन विद्वानों द्वारा प्राचीन लैटिन एवं यूनानी साहित्य के प्रति अत्याधिक रुचि-प्रदर्शन के कारण इटालियन लोक भाषा का विकास अवरूद्ध हो गया। इस युग के प्रसिद्ध इटालियन साहित्यकार एवं विद्वान लैटिन एवं यूनानी साहित्य के महान उपासक थे, परंतु अपनी राष्ट्रीय भाषा व साहित्यो के प्रति बड़े उदासीन थे। यद्यपि पेट्रार्क इटालियन भाषा में सुंदर कविताओं की रचना कर सकता था, परंतु वह ऐसी रचना करने में हीनता का बोध करता था। दूसरी ओर , लैटिन भाषा में लिखने में उसे गर्व था। इन विद्वानों ने होरेस, सिसेरो एवं वर्जिल की रचनाओं का अनुसरण किया एवं उन्होंने प्राचीन साहित्य के गौरव एवं वास्तविक सौंदर्य का द्वार प्रशस्त कर दिया। प्राचीन यूनानी तथा लैटिन साहित्य एवं ग्रंथों की खोज एवं वैज्ञानिक अध्ययन के परिणाम स्वरूप विद्वानों में वैज्ञानिक अवचेतना की प्रवृत्ति जागतृ हुई। इस युग में राजाओं या सेनापतियों की प्रशस्ति की अपेक्षा विद्वानों एवं कलाकारों के जीवन चरित्र लिखे एवं पढ़े जाने लगे। प्राचीन कला के अध्येता प्रयोगों में रुचि ले रहे थे और नई पद्धतियों का निर्माण कर कुछ सुप्रसिद्ध कलाकार जैसे लिओनार्दो दा विंची और माइकल एंजेलो नवोदित युग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लिओनार्दो दा विंची मूर्तिकार, वैज्ञानिक आविष्कारक, वास्तुकार, इंजीनियर, बैले नृत्य का आविष्कारक और प्रख्यात बहुविज्ञ था।
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पुनर्जागरण काल में हुई वैज्ञानिक खोजों का वर्णन कीजिये