‘पुनरावृत्ति’ शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है ?
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पुनर
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‘पुनरावृत्ति’ शब्द में कौन सा उपसर्ग प्रयुक्त है-पुनर
Explanation:
उपसर्ग संस्कृत व्याकरण में क्रियाओं या क्रिया संज्ञाओं से पहले बीस पूर्वसर्गीय कणों के एक विशेष वर्ग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। वैदिक में, इन पूर्वसर्गों को क्रियाओं से अलग किया जा सकता है; शास्त्रीय संस्कृत में उपसर्ग अनिवार्य है।
उपसर्ग ऐसे शब्दांश जो किसी शब्द के पहले जुड़ कर उसके अर्थ में बदल देते हैं या उसके अर्थ में विशेषता ला देते हैं। उप (समीप) + सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है.
उपसर्गो के तीन प्रकार होते हैं:
अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दुर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम्, सु, निर्, दुस्, निस्, अपि ।
उपसर्गो के तीन भेद है:
1. तत्सम उपसर्ग:
तत् का मतलब है - उसके, और सम् का मतलब है – समान। अर्थात - ज्यों का त्यों या जैसा है वैसा। जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी बदलाव के ले लिया जाता है, उन्हें तत्सम शब्द कहा जाता हैं। इनमें ध्वनि बदलाव नहीं होता है।
2. तद्भव उपसर्ग:
तत्सम शब्दों में समय और परिस्थितियों के कारण कुछ बदलाव होने से जो शब्द बने हैं उन्हें तद्भव कहते हैं। तद्भव का शाब्दिक मतलब है – उससे बने (तत् + भव = उससे उत्पन्न), अर्थात जो उससे (संस्कृत से) उत्पन्न हुए हैं। यहाँ पर तत् शब्द भी संस्कृत भाषा की ओर इशारा करता है। अर्थात जो संस्कृत से ही बने हैं।
3. आगत उपसर्ग:
हिंदी में उपयोग किये जाने वाले विदेशी भाषाओं (अरबी, फारसी, उर्दू, अंगेजी) के उपसर्ग आगत उपसर्ग माने जाते हैं। इनकी संख्या —19 है। जो उपसर्ग अरबी फारसी व उर्दू भाषा से लिए है। अलविदा,अलबत्ता,अलगरज