पाप
6. वाणी से आदमी की पहचान किस तरह होती है
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जीवन के उत्थान या पतन के तीन प्रमुख कारण होते हैं। मन (विचार), वचन (शब्द) एवं काया (शरीर) ये तीन कारक में सबसे बड़े कर्म का बंध या क्षय मन से होता है। उसी मन से भावना यदि शुद्ध हो तो केवल ज्ञान, केवल दर्शन की प्राप्ती हो सकती है। अन्यथा कर्मों का बंध होता है। वचन पर संयम रखना होगा। वाणी पर नियंत्रण होगा तो मन भी नियंत्रित रहेगा। हमें धन कमाने की तो बहुत जल्दी होती है लेकिन मन, वचन और काया का सद्उपयोग करने के बाद ही धन की लालसा रखनी चाहिए तभी इसमें वृद्धि होती है।
यह बात राजबाड़ा स्थित जैन स्थानक भवन में संत शीतलराजजी ने शनिवार को प्रवचन कर कहीं। संत ने आगे कहा कि व्यापारी को आज भय सताता है क्योंकि व्यापार नीति और पद्धति वर्तमान में न्याय संगत नहीं रह गई। सेठ पूनमचंद का दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि भगवान महावीर की वाणी सुनने के बाद सेठ पूनमचंद ने अपनी पूरी संपत्ति दान कर दी और छोटी सी कुटिया में रहने लग गए। एक दिन पूनमचंद उपवास करते तो दूसरे दिन उनकी प|ी उपवास करती। एक-एक दिन का अपने हिस्से का भोजन वे दान कर देते। लेकिन हम आज के समय में दान करने की भावना नहीं रखते हुए 18 पापों का बंध कर पैसा कमाने में लगे रहते हैं। गुरुदेव ने कहा कि मन से सोचा गया गलत विचार ही सबसे बड़ा पाप होता है। गुरुदेव ने कहा कि मन को अच्छे कार्य में लगाए। इससे सामायिक में भी शुद्धता आती है। कर्मों की निर्जरा का यह सबसे आसान मार्ग है। चातुर्मास के दौरान प्रतिदिन तपस्या का दौर जारी है। स्थानक भवन में दया पाली गई। इस धार्मिक क्रिया में सैकडों महिला-पुरूषों ने भाग लिया। एकासना व आयंबिल आदि भोजनशाला में कराए गए। जानकारी संदीप जैन ने दी।