पीपा हरि सो गुरु बिना, होत न बिसद विवेक।
ज्ञान रहित अज्ञानयुत, कठिन कुमस की टेक।।
पीपा मन तो बावलों, इसके मते न लाग।
माया का भ्रम छोड़ के, सत रे मारग भाग।।
मनसा वाचा कर्मणा , सुमरण सब सुख मूल।
पीपा माया मत चले , तू हरिनाम न भूल ।।
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उक्ष्हेय्द्य्ग्व्फ्फ्व्फ्व्फ्व्फ्व्फ्व्फ्व्फ्व्त्त्व्त्व्त्व्त्त्व्
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