Hindi, asked by varshaarjun641, 7 hours ago

पीपा हरि सों गुरू, बिना, होता न विसद विवेक । पीपा माया मत चलै, तू हरिनाम न भूल ।। दोहा का संदर्भ , प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

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Answered by shishir303
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पीपा हरि सों गुरु बिना, होत न विसद विवेक।  

ज्ञान रहित अज्ञानयुत, कठिन कुमन की टेक।।

पीपा मन तो बावलों, इण्के मतै न लाग।  

माया का भ्रम छोड़ के, सत रे मारग भाग।।

मनसा वाचा करमणा, सुमरण सब सुख मूल।

पीपा माया मत चलै, तू हरिनाम न भूल।।

संदर्भ : यह पद्यांश मध्य काल के प्रसिद्ध संत पीपा जी महाराज द्वारा रचित दोहों से अवतरित किया गया है। इन दोहों के माध्यम से संत पीपाजी महाराज ने गुरु और ज्ञान की महिमा का वर्णन किया है।  

व्याख्या : संत पीपाजी महाराज कहते हैं कि गुरु की कृपा के बिना ईश्वर के दर्शन नहीं हो सकते अर्थात गुरु से ज्ञान प्राप्त किए बिना ईश्वर का साक्षात्कार ना ही कर सकते हैं, और ना ही ईश्वर को समझ सकते हैं। जिस व्यक्ति के मन में अज्ञानता का अंधकार होता है, उसका मन कुटिलता से भरा होता है, और उसके मन में कुटिलता के कारण विवेक का जागरण नहीं हो पाता।  

दूसरे दोहे में पीपाजी महाराज कहते हैं कि यह मन तो भ्रमित है, पागल के समान है, इसके मन के बहकावे में मत आओ और मोह माया का भ्रम छोड़कर संतों की शरण में जाओ। संतों की शरण में जाकर ही मन को साधने का अवसर मिलेगा, ज्ञान की प्राप्ति होगी और ईश्वर को समझने का रास्ता मिलेगा।  

तीसरे दोहे में संत पीपाजी महाराज कहते हैं कि मन, वचन और कर्म से ईश्वर का ध्यान करने में ही सच्चा सुख है, यही सारे सुखों की जड़ है।  इसलिए संत पीपाजी महाराज बोलते हैं कि तू इस सांसारिक मोह, माया के कुचक्र को भूल जा और ईश्वर के नाम को कभी ना भूलना और उनकी शरण में जाना।

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