(१) पीपीटी निर्माण कीजिए --विद्यार्थियों पर कोरोना महामारी का प्रभाव ।
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मार्च में लॉकडाउन के बाद से चार महीने बाद मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारे और गिरजाघर तो खुल गए मगर स्कूल-कॉलेज—विश्वविद्यालय आदि शिक्षा के ठिकाने बंद हैं। बरायेनाम ऑनलाइन शिक्षा जारी है मगर स्कूल-कॉलेज-टेक्निकल इंस्टीट्यूट जाए बगैर क्या बच्चों से असल पढ़ाई-लिखाई करवाई जा सकती है?
जाहिर है कि देश के करोड़ों विद्यार्थी तो नोबेल पुरस्कार विजेता कवि, लेखक, पेंटर, दार्शनिक रवींद्रनाथ ठाकुर हैं नहीं जो घर पर मिली शिक्षा की बदौलत पूरी दुनिया से अपनी विद्वत्ता का लोहा मनवा लेंगे। स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा जहां बेतहाशा बढ़ रहे संक्रमितों की सेवा में चरमरा रहा है वहीं शिक्षा का तंत्र लॉकडाउन की मार से पस्त है।
शिक्षण संस्थानों के खुलने पर सबसे ज्यादा खतरा विद्यार्थियों के लिए है मगर बंद रहने से अनेक कॉलेज एवं इंस्टीट्यूट का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है।
ऑनलाइन शिक्षा भी उन मुट्ठी भर बच्चों तक ऐसे राज्यों में ही पहुंच पा रही है जहां बच्चों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन के साथ इंटरनेट का ब्रॉडबैंड नेटवर्क मौजूद है। भारत के ज्यादातर गांवों में तो बॉडबैंड है ही नहीं, अनेक गांवों में बिजली भी हरेक घर को नसीब नहीं है।
ऐसे में बच्चे ऑनलाइन शिक्षा कैसे प्राप्त कर पाएंगे? जाहिर है कि वे बच्चे सिर्फ स्कूल में ही शिक्षा पा सकते हैं। यूजीसी के अनुसार भारत में 950 विश्वविद्यालय हैं जिनमें निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 361 है।
हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2019-20 में लगभग 7.7 लाख स्नातक विद्यार्थियों ने निजी विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया। इनमें लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा कम रही। इससे साफ है कि महामारी से पैदा आर्थिक संकट में बालिकाओं को सबसे पहले शिक्षा से महरूम किया जा रहा है।
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