प्र 1. आपको अपनी पाठशाला कैसी लगती है? क्यो?
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कुम्हार की तरह थपकी देकर आपको आकार दिया हो, जहाँ का मंच कर्मभूमि का योगेश्वर बनकर दुनिया के मंचों के लिए आपका पथ प्रशस्त करता हो, जहाँ के मैदान में चोट लगने के बाद बदन में समाई मिट्टी ख़ून के साथ ही रगों में दौड़ती हो ... उस स्कूल को अपने से बाहर निकालकर कैसे देखें और कैसे अभिव्यक्त करें?? शब्द कहाँ से लाएँ, किसे लेखनी बनाएँ?
मेरे लिए अपनी पाठशाला का महत्व सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि मैं पहली से बारहवी तक पूरे बारह साल यहाँ पढ़ा... ये हाड़-मज्जा से परे एक बालक के किशोर और फिर युवा हो जाने तक उसे पालने वाले गर्भ का मामला है। हाँ, हम माँ के गर्भ से निकलकर अपने स्कूल के गर्भ में ही तो जाते हैं!! जैसे माँ की कोख़ में हमारी जैविकी तय होती है वैसे ही विद्यालय की कोख़ में हमारी सांसारिकी तय होती है। जैसे गर्भावस्था में माँ की ख़ुराक और व्यवहार हमारे शरीर और मन का सृजन करते हैं वैसे ही हमारे अध्यापक, सहपाठी और विद्यालय का वातवरण उन बीजों का अंकुरण करते हैं। यहाँ का खाद पानी तय करता है कि आप कितने गहरे और कितने ऊँचे जाएँगे। आपके माता-पिता तो केवल ये तय करते हैं कि आप किस स्कूल में पढ़ेंगे... आपको कैसे शिक्षक और कैसे दोस्त मिलेंगे ये तो नियति ने पहले से तय कर रखा होता है। ... और ये सब कितना अद्भुत, कितना चमत्कारी और कितना रोमांचक होता है!! कैसे-कैसे संयोग। ग़जब की दोस्ती, खतरनाक झगड़े, नादानियाँ, शैतानियाँ, मसूमियत, ग़लतियाँ, सबक, पिटाई, स्नेह, मार्गदर्शन, ऊर्जा ... ये सब और बहुत कुछ, सब एक जगह, एक साथ।
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Answer:
मुझे मेरी पाठशाला बहुत पसंद है। मुझे मेरा स्कूल पसंद है क्योंकि इससे मुझे इंटर-स्कूल प्रतियोगिताओं में भाग लेने के बहुत सारे अवसर मिलते हैं। यह मुझे पढ़ाई में प्रगति करने में भी मदद करता है। कई खेल उपकरण भी हैं जो हमें बहुत सारे खेल खेलने में सक्षम बनाते हैं। शिक्षक भी अच्छा सिखाते हैं और समर्थन करते हैं और जब भी हमें उनकी आवश्यकता होती है, हमारी सहायता करते हैं।
Hope it helps : )