प्र.1.
क)
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करते हुए इसके केन्द्रिय भाव स्पष्ट कीजिए।
(i) सिखवति चलन जसोदा मैया
अरबराइ कर पानि गहावत, डगमगाइ धरनी धरै पैया।
कबहुँक सुन्दर बदन बिलोकति, उर आनन्द भरि लेत बलैया।
कबहुँक कुल देवता मनावति, चिरजीवहु मेरौ कुँवर कन्हैया
कबहुँक बल कौं टेरि बुलावति, इति आँगन खेलौ दोउ भैया
सूरदास स्वामी की लीला, अति प्रताप बिलसत नंदरैया।
(ii) मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई यह अजहूँ है छोटी।
तू तो कहति बल की बेनी ज्यौं, | है लॉबी मौटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै नागिनि सो भई लोटी।
काचौ दूध पियावति पचि-पचि देति न माखन रोटी।
सूरज चिरजीवौ दोउ भाई, हरि-हलधर की जोटी।।
(ख) ()
कबीर पूँजी साह की तूं जिनि खोवै ख्वार।
खरी बिगूचनि होइगी, लेखा देती बार।
कबीर माला काठ की कहि समझावै तोहि।
मन न फिरावै आपणों, कहा फिरावै मोहि।।
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