प्र० 1. "कह नहीं सकता संजय किसके पापों का यह परिणाम है, किसकी भूल थी,जिसन
अभ्यास माला
भीषण विषफल हमें मिला।"
(I) उपर्युक्त कथन कौन, किससे, कब और क्यों कहता है?
प्र० 2. लीजि
इस
उत्तर-
(1) प्रस्तु
उत्तर-
(II) संजय कौन है वक्ता का संजय के साथ क्या सम्बन्ध है? क्या संजय वक्ता को उसकी
समस्या का समाधान दे पाता है?
(II)
उत्तर-
(III)
उत्तर-
Answers
Answer:
कुरुक्षेत्र युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्रायः सभी जनपदों ने भाग लिया था। महाभारत व अन्य वैदिक साहित्यों के अनुसार यह प्राचीन भारत में वैदिक काल के इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। [1] इस युद्ध में लाखों क्षत्रिय योद्धा मारे गये जिसके परिणामस्वरूप वैदिक संस्कृति तथा सभ्यता का पतन हो गया था। इस युद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के क्षत्रिय वीरों ने भी भाग लिया और सब के सब वीर गति को प्राप्त हो गये। [2] इस युद्ध के परिणामस्वरुप भारत में ज्ञान और विज्ञान दोनों के साथ-साथ वीर क्षत्रियों का अभाव हो गया। एक तरह से वैदिक संस्कृति और सभ्यता जो विकास के चरम पर थी उसका एकाएक विनाश हो गया। प्राचीन भारत की स्वर्णिम वैदिक सभ्यता इस युद्ध की समाप्ति के साथ ही समाप्त हो गयी। इस महान युद्ध का उस समय के महान ऋषि और दार्शनिक भगवान वेदव्यास ने अपने महाकाव्य महाभारत में वर्णन किया, जिसे सहस्राब्दियों तक सम्पूर्ण भारतवर्ष में गाकर एवं सुनकर याद रखा गया। [3] युद्ध की ऐतिहासिकता विद्वानों की चर्चा के अधीन है।[4] कुरुक्षेत्र युद्ध को एक ऐतिहासिक तारीख बताने का प्रयास किया गया है। सुझाए गए तारीख 3000 से लेकर 3200 ईसा पूर्व के आसपास के हैं, जबकि लोकप्रिय परंपरा यह मानती है कि युद्ध कलियुग में संक्रमण का प्रतीक है।[5] यह संभव है कि ऋग्वेद में वर्णित दशराजन युद्ध ने कुरुक्षेत्र युद्ध की "कहानी का" नाभिक "बनाया हो, हालांकि यह महाभारत के खाते में बहुत विस्तारित और संशोधित किया गया था।[6]
Answer:
संजय हमेशा राजा को समय-समय पर सलाह देते रहते थे. जब पांडव दूसरी बार जुआ में हारकर 13 साल के लिए वनवास में गए तो संजय ने धृतराष्ट्र को चेतावनी दी थी कि 'हे राजन! कुरु वंश का समूल नाश तो पक्का है लेकिन साथ में निरीह प्रजा भी नाहक मारी जाएगी. हालांकि धृतराष्ट्र उनकी स्पष्टवादिता पर अक्सर क्षुब्ध भी हो जाते थे.
Explanation:
धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का सजीव वर्णन सुनाने के लिए महर्षि वेद व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी. असल में संजय पेशे से बुनकर और धृतराष्ट्र के मंत्री थे. युद्ध के बाद उनकी चर्चा आमतौर पर खत्म हो गई.
संजय को धृतराष्ट्र ने महाभारत युद्ध से ठीक पहले पांडवों के पास बातचीत करने के लिए भेजा था. वहां से आकर उन्होंने धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का संदेश सुनाया था. वह श्रीकृष्ण के परमभक्त थे. बेशक वो धृतराष्ट्र के मंत्री थे. इसके बाद भी पाण्डवों के प्रति सहानुभुति रखते थे. वह भी धृतराष्ट्र और उनके पुत्रों अधर्म से रोकने के लिये कड़े से कड़े वचन कहने में हिचकते नहीं थे.