Hindi, asked by tempmaha007, 7 months ago

प्र.1) निम्नलिखित गदयांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए

हम विकास की चर्चा यहाँ छोड़ रहे हैं, क्योंकि विश्व के बहुसंख्यक लोगों का इस सारे गोरखधंधे
से विश्वास ही उठ गया है। यह सारी बहस तो उन लोगों के बीच की है, जो व्यवस्था के साथ जुड़े हुए
हैं। यह इसलिए चलती है, क्योंकि इसके साथ तंत्र की शक्ति है, तंत्र पर हावी पाँच प्रतिशत राजनीतिक
और आर्थिक शक्ति वाले हथियाए हुए लोग और उनके 15 प्रतिशत सहायकों के लिए हो रेडियो,
टेलीविजन, समाचारपत्र और सारा प्रचारतंत्र बोलता है। सभी मंचों पर वे ही दिखाई देते हैं। इससे कोई
अंतर नहीं पड़ता कि कुछ लोग सत्ता के आसनों पर विराजमान हैं और कुछ कतार बनाकर प्रतीक्षा में।
अब विकास ने इस धरती को इतना प्रदूषित और विपन्न बना दिया है कि प्रकृति दवारा प्राणी मात्र को
जिंदा रहने के लिए दी हुई प्राणवायु ही ज़हर बन गई है। जीवन-संचार करनेवाले तत्वों के बजाय
विकिरण का खतरा पैदा हो गया है। पानी का भयंकर पदूषण ही नहीं हुआ है, बल्कि पानी की कमी
भी हो गई है। औदयोगिक सभ्यता हमारे हाथ में तो आकर्षक पैकेटों में उपभोग की वस्तुएँ रख देती है,
लेकिन हमारी आँखों के सामने दूर नदियों में विष छोड़ जाती है,वायु में जहर घोल जाती है। इसी प्रकार
रात को दिन बनानेवाली बिजली, अपने उत्पादन केंद्र में पैदा करनेवाले विकिरण के खतरे, वायुमंडल में
कार्बन घोलने या बाँध बनाकर उपजाऊ धरती व जंगलों को डूबोकर लाखों लोगों को उजाड़ने की
घिनौनी करतूतों की कहानी पीछे छोड़ जाती है।


1)क्या ज़हर बन गई है?
2)औदयोगिक सभ्यता की घिनौनी करतूतों की कहानी स्पष्ट कीजिए।।
3)विकास की बातें आज गोरखधंधा बनकर क्यों रह गई हैं?
4)अंधाधुंध विकास ही जीवन के लिए घातक बन गया है, कैसे?
5)गदयांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए

Answers

Answered by sachinsansar07
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Answer:

1- प्रकृति दवारा प्राणी मात्र को जिंदा रहने के लिए दी हुई प्राणवायु ही ज़हर बन गई है।

2- औदयोगिक सभ्यता हमारे हाथ में तो आकर्षक पैकेटों में उपभोग की वस्तुएँ रख देती है, लेकिन हमारी आँखों के सामने दूर नदियों में विष छोड़ जाती है,वायु में जहर घोल जाती है। इसी प्रकार रात को दिन बनानेवाली बिजली, अपने उत्पादन केंद्र में पैदा करनेवाले विकिरण के खतरे, वायुमंडल में कार्बन घोलने या बाँध बनाकर उपजाऊ धरती व जंगलों को डुबोकर लाखों लोगों को उजाड़ने की घिनौनी करतूतों की कहानी पीछे छोड़ जाती है।

3- विकास की बातें आज गोरख धंधा बनकर रह गई है क्योंकि बहुसंख्यक लोगों का इस पर से विश्वास उठ गया है l

4- अंधाधुंध विकास ने इस धरती को इतना प्रदूषित और विपन्न बना दिया है कि प्रकृति दवारा प्राणी मात्र को जिंदा रहने के लिए दी हुई प्राणवायु ही ज़हर बन गई है। जीवन-संचार करनेवाले तत्वों के बजाय विकिरण का खतरा पैदा हो गया है।

5- औदयोगिक सभ्यता

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