प्र.1. राष्ट्रभाषा, राजभाषा और सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी भाषा पर विचार कीजिए।
प्र.2. कविवर बिहारी का साहित्यिक परिचय दीजिए।
प्र.3. 'आदिकाल' के नामकरण पर विचार करते हुए उसकी प्रवृतियाँ बताइए।
प्र.4. 'हिमाद्रि तुंग शृंग से' कविता का प्रतिपाद्य बताते हुए इसकी काव्यगत विशेषताओं का
विवेचन कीजिए।
Answers
उत्तर - 1 ►
राष्ट्रभाषा, राजभाषा और संपर्क भाषा के रूप में हिंदी भाषा....
राष्ट्रभाषा : किसी भी देश की राष्ट्रभाषा से तात्पर्य उस भाषा से है, जिसे उस देश के संविधान में राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित किया हो। जो उस देश के प्रत्येक हिस्से में बोली जाती हो। जिसे देश का प्रत्येक व्यक्ति आसानी से समझता हो, बोलता हो, लिखता हो। जो देश की सभी आधिकारिक कार्यों में प्रयुक्त की जाती हो। जो देश की राष्ट्रभाषा के रूप में देश के संविधान द्वारा घोषित की गई हो। इस संदर्भ में हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं माना जा सकता, क्योंकि भारत के संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया है।
भारत अनेक भाषाओं वाला बहुभाषी देश है। इस कारण हिंदी संपूर्ण भारत में नहीं बोली जाती। यही कुछ कारण थे कि हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया जा सका, क्योंकि अनेक गैर हिंदी भाषी राज्यों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित करने का विरोध किया था।
राजभाषा : हाँ, हिंदी हमारे भारत की राजभाषा अवश्य है। राजभाषा से तात्पर्य उस भाषा से है, जिसमें देश की केंद्र सरकार का कार्य होता हो। हमारे देश की केंद्र सरकार के सारे कार्य हिंदी और अंग्रेजी में होते हैं। क्योंकि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है, इसके लिए उसे राजभाषा घोषित नहीं किया जा सकता। जबकि हिंदी इस देश की ही भाषा है। केंद्र के केंद्र सरकार के अधिकतर कार्य हिंदी में ही किए जाते हैं। दूसरे गैर हिंदी भाषाओं से पत्र व्यवहार के रूप में के लिए अंग्रेजी भाषा का भी प्रयोग किया जाता है। जो राज्य हिंदी नहीं समझते उनके साथ अंग्रेजी भाषा का भी प्रयोग किया जाता है। लेकिन केंद्र सरकार के सभी संस्थानों कार्यालयों में हिंदी एक राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। इस दृष्टि से हिंदी भारत की राजभाषा अवश्य है।
संपर्क भाषा : कोई भी संपर्क भाषा वह होती है, जो सबसे अधिक लोगों द्वारा बोली जाती हो। जो लोगों के बीच एक संपर्क काम करती हो। इस दृष्टि से हिंदी संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो रही है, क्योंकि देश का बहुत बड़ा भूभाग हिंदी भाषा बोलता है और जो गैर हिंदीभाषी प्रदेश है वह भी हिंदी को समझते बोलते हैं। वहां पर हिंदी द्वितीय भाषा के रूप में अच्छी-खासी प्रचलित है। कुछेक एक दक्षिण भारतीय राज्यों को छोड़ दिया जाए तो हिंदी पूरे भारत में सामान्य रूप से समझी जाती है। इसलिए हिंदी धीरे-धीरे संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो रही है और यही भारत की असली संपर्क भाषा है। अंग्रेजी भाषा हिंदी और गैर हिंदी भाषी राज्यों के बीच संपर्क का तो काम करती है लेकिन यह केवल उच्च शिक्षित लोगों और बड़े बड़े अधिकारियों के तक ही सीमित है आम जनमानस में अंग्रेजी भाषा उतनी उतनी लोकप्रिया नही।
उत्तर - 2 ►
कविवर बिहारी का साहित्यिक परिचय...
कविवर बिहारी हिंदी साहित्य की रीतिकाल काव्य धारा के प्रसिद्ध कवि रहे हैंय़ उनका जन्म सन् 1652 ईस्वी में ग्वालियर में हुआ था। उनका बचपन बुंदेलखंड में बीता था। उनके गुरु का नाम नरहरिदास था।
कविवर बिहारी की एकमात्र रचना ‘बिहारी सत्सई’ (सप्तशती) है। उनकी यह रचना एक मुक्तक काव्य है, जिसमें 713 दोहे संकलित हैं। कविवर बिहारी ने अपनी सत्सई रचना में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उनकी रचना बिहारी सतसई को तीन भागों नीति विषयक दोहे, भक्ति और अध्यात्म पक्ष तथा श्रंगारपरक में बांटा जा सकता है।
कविवर बिहारी की रचना में श्रंगार पक्ष का अधिक जोर दिया गया है और उन्होंने बेहद कलात्मक ढंग से श्रंगारपरक काव्य की रचना की है। कविवर बिहारी की रचनाएं श्रंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों से संबंधित रही हैं। उनकी रचनाओं में कृष्ण उपासना पर अधिक जोर दिया गया है उन्होंने अपनी रचना में भक्ति भावना से ओतप्रोत राधा कृष्ण के प्रेम की भावना का अधिक का चित्रण किया है।
उत्तर - 3 ►
आदिकाल का नामकरण...
आदिकाल का नामकरण हिंदी साहित्य का प्रथम काल है। आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रथम काल रहा है। इस काल को वीरगाथा काल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस काल में वीर रस की प्रधानता लिए हुए अनेक रचनाओं की रचना की गई और इस काम में वीरगाथा से भरे हुए ग्रंथों की प्रधानता रही है। एक विद्वान ने इस काल को चारण काल का भी नाम दिया है क्योंकि इस काल में हिंदी साहित्य में ऐसे अनेक ग्रंथों की रचना की गई जो कवियों द्वारा किसी राजा की स्तुति गान के लिए रचित किए गए। अनेक विद्वानों का आदिकाल के नामकरण के संबंध में भिन्न मत रहा है, इसलिये इसे कोई स्पष्ट नाम नही दिया जा सकता।
आदिकाल की प्रवृत्ति वीररस की प्रधानता लिये ग्रंथों की ही रहा है। इस काल में ऐसे राजाओं की शौर्यगाथा का वर्णन किया गया है, जिन्होंने युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया हो।
उत्तर - 4 ►
‘हिमालय तुंग श्रंग’ कविता का प्रतिपाद्य...
‘हिमालय तुंग श्रंग’ कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता है। इस कविता के माध्यम से कवि ने देश में आजादी की अलख जगाने के लिए प्रेरणा दी है। इस कविता में उन्होंने हिमालय की महिमा का बखान करते हुए देश के लोगों का आह्वान किया है कि वह निडर होकर अपनी आजादी को पाने के लिए कर्तव्य पथ पर चल पड़े और बिना डरे बिना रुके आजादी को हासिल करके ही दम ले। कवि ने इस कविता के माध्यम से लोगों में देशभक्ति की भावना भरने का प्रयत्न किया है।
≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡