प्र. 1 विम्नविखित गद्यांश को ध्ययिपूिवक पढ़कर पूछेगए प्रश्ो ांके
उत्तर दीविए (8)
भारतीय दर्शन सिखाता है कक जीवन का एक आर्य और लक्ष्य है, उि आर्य की
खोज हमारा दासयत्व है और अंत में उि लक्ष्य को प्राप्त कर लेना हमारा सवर्ेष
असिकार है। इि प्रकार दर्शन वह है जो कक आर्य को उद्घाटित करन की कोसर्र्
करता है और जहााँ तक उिे इिमें िफलता समलती है. वह इि लक्ष्य तक अग्रिर
होने की प्रकिया करता है, कु ल समलाकर आसखर यह लक्ष्य क्या है? इि अर्श में
यर्ार्श की प्रासप्त वह है सजिमें पा लेना, के वल जानना नहीं है, बसकक उिी का अंर्
हो जाना है। इि उपलसधि में बािा क्या है? बािाएाँ कई हैं, पर इनमें प्रमुख है-
अज्ञान। असर्सित आत्मा नहीं है, यहााँ तक की यर्ार्श िंिार भी नहीं है। यह दर्शन
ही है जो उिे सर्सित करता है और अपनी सर्िा िे उिे उि अज्ञान िे मुसि
कदलाता है, जो यर्ार्श दर्शन नहीं होने देता। इि प्रकार एक दार्शसनक होना एक
बौसिक अनुगमन करना नहीं है, बसकक एक र्सिप्रद अनुर्ािन पर चलना है,
क्योंकक ित्य की खोज में लगे हुए िही दार्शसनक को अपने जीवन को इि प्रकार
आचटरत करना पड़ता है ताकक उि यर्ार्श िे एकाकार हो जाय सजिे वह खोज रहा
है। वास्तव में, यही जीवन का एकमात्र िही मागश है और िभी दार्शसनकों को ही
नहीं, बसकक िभी मनुष्यों को इिका पालन करना होता है, क्योंकक िभी मनुष्यों के
दासयत्व और सनयाशत एक ही हैं।
सनम्न प्रश्नों के उत्तर दीसजए:
(क) भारतीय दर्शन ककि लक्ष्य की ओर िंके त करता है? (2)
(ख) लक्ष्य प्राप्त करने में प्रमुख बािा क्या है? (2)
(ग) जीवन का एक मात्र उद्देश्य क्या है? (2)
(घ) 'अनुर्ािन' र्धद में उपिगश और मूल र्धद अलग करें। (1)
(ङ) इि गद्ांर् का उसचत र्ीषशक है? (1)
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Bhai aap isko copy me likh kr post kr skte h
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