Hindi, asked by sainvinod214, 3 months ago

प्र.10 "पुरानी बस में यात्रा करना ठीक नहीं।” स्पष्ट कीजिए।

Answers

Answered by sushmakadam6027
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Answer:

बस की पुरानी और जर्जर हालत देखकर लेखक को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह चलती भी होगी। उसने बस कंपनी के हिस्सेदार से पूछा भी कि बस चलती है कि नहीं? हिस्सेदार ने कहा कि बिल्कुल चलती थी और चलेगी। इस पर लेखक ने फिर पूछा कि क्या बस अपने आप बिना धक्का दिए चलेगी ? हिस्सेदार ने फिर विश्वासपूर्वक कहा कि वह अपने आप ही चलेगी। यह सुनकर लेखक को बड़ा आश्चर्य हुआ। ऐसी खटारा, जीर्ण-शीर्ण बस स्टार्ट होकर अपने आप चल सकती थी, इस बात पर लेखक विश्वास नहीं कर पा रहा था।

Answered by sakahilahane23
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लेखक : हरिशंकर परसाई

जन्म : 22 अगस्त1924

मृत्यु : 10 अगस्त 1995

बस की यात्रा पाठ प्रवेश

वे इस लेख के द्वारा, अपने व्यक्तिगत अनुभव का बखान करते हैं जोकि है ‘‘बस की यात्रा।” वे एक बार बस के द्वारा अपनी यात्रा करते हैं और किस तरह की परेशानियाँ इस यात्रा में आती हैं, इस सब का अनुभव इस रचना के द्वारा दर्षाया गया है।

एक बार बस से पन्ना को जा रहे थे बस बहुत ही पुरानी थी जैसा कि दर्शाया गया है इस सफर में क्या-क्या अनुभाव किया, क्या-क्या उनके साथ घटा, और उन्होंने परिवहन निगम की जो बसें होती हैं उनकी घसता हलात पर व्यंग किया है और ये भी दर्शाया गया है कि किस तरह से वे अपनी बसों की देख-भाल नहीं करते हैं और एक घसियत पद की तरह से इस रचना को लिखा है जब हम इसको पढ़ते हैं तो बहुत सी घटानाऐं हास्यपद (हँसीपद) लगती हैं और बहुत ही रोंचक हो गई है उनकी यह रचना। तो आइए हम भी चलते हैं उनकी इस यात्रा पर।

बस की यात्रा पाठ सार

एक बार लेखक अपने चार मित्रों के साथ बस से जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़ने के लिए अपनी यात्रा बस से शुरु करने का फैसला लेते हैं। परन्तु कुछ लोग उसे इस बस से सफर न करने की सलाह देते हैं। उनकी सलाह न मानते हुए, वे उसी बस से जाते हैं किन्तु बस की हालत देखकर लेखक हंसी में कहते हैं कि बस पूजा के योग्य है।

नाजुक हालत देखकर लेखक की आँखों में बस के प्रति श्रद्धा के भाव आ जाते हैं। इंजन के स्टार्ट होते ही ऐसा लगता है की पूरी बस ही इंजन हो। सीट पर बैठ कर वह सोचता है वह सीट पर बैठा है या सीट उसपर। बस को देखकर वह कहता है ये बस जरूर गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के समय की है क्योंकि बस के सारे पुर्जे एक-दूसरे को असहयोग कर रहे थे।

कुछ समय की यात्रा के बाद बस रुक गई और पता चला कि पेट्रोल की टंकी में छेद हो गया है। ऐसी दशा देखकर वह सोचने लगा न जाने कब ब्रेक फेल हो जाए या स्टेयरिंग टूट जाए।आगे पेड़ और झील को देख कर सोचता है न जाने कब टकरा जाए या गोता लगा ले।अचानक बस फिर रुक जाती है। आत्मग्लानि से मनभर उठता है और विचार आता है कि क्यों इस वृद्धा पर सवार हो गए।

इंजन ठीक हो जाने पर बस फिर चल पड़ती है किन्तु इस बार और धीरे चलती है।आगे पुलिया पर पहुँचते ही टायर पंचर हो जाता है। अब तो सब यात्री समय पर पहुँचने की उम्मीद छोड़ देते है तथा चिंता मुक्त होने के लिए हँसी-मजाक करने लगते है।अंत में लेखक डर का त्याग कर आनंद उठाने का प्रयास करते हैं तथा स्वयं को उस बस का एक हिस्सा स्वीकार कर सारे भय मन से निकाल देते हैं।

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बस की यात्रा पाठ की व्याख्या

हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है जो जबलपुर की ट्रेन मिला देती है। सुबह घर पहुँच जाएँगे।

लेखक ने वर्णन किया कि वेपाँच मित्र थे।उन्होंने एक कार्यक्रम बनाया कि शाम चार बजे की बस से चलेंगे। ये जो चार बजे की बस है यही उन्हें उनकी मंजिल तक पहुँचने में मदद करेगी। पन्ना (पन्ना जगह का नाम) से ये बस चलने वाली थी । करीबन एक घंटे बाद पन्ना से सतना के लिए उन्हें बस मिलनी थी । लेखक और उनके मित्रों को जबलपुर जाना है इसलिए कुछ यात्रा वो बस से करेंगे उसके बाद जबलपुर के लिए ट्रेन पकडेंगे। यात्रा में पूरी रात का समय लगेगा और वह सुबह के समय तक घर पहुँच जाएँगे।

हम में से दो को सुबह काम पर हाज़िर होना था इसीलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना ज़रूरी था। लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफ़र नहीं करते। क्या रास्ते में डाकू मिलते हैं? नहीं, बस डाकिन है।

हाज़िर: उपस्थित

सफ़र: यात्रा

डाकिन: डराने वाली

लेखक के साथ जो दो मित्र गए थे उन्हें दफ्तर में समय पर उपस्थित होना था। इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था। उनके जो जानकर लोग थे उन्होंने उन्हें सलाह दी कि अगर कोई समझदार व्यक्ति होगा तो इस शाम को चलने वाली बस से यात्रा करना पसंद नहीं करेगा, क्योंकि शाम के थोड़ी देर बाद काफी अँधेरा हो जाता है और रात के समय में यात्रा करना सुरक्षित नहीं र

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