प्र.15 क्या आप को लगता है कि यदि श्रीलंका में सिंहली की जगह तमिल को राजभाषा बनाया गया होता तो वहाँ जातीय तनाव नहीं होता? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
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श्रीलंकाई गृहयुद्ध श्रीलंका में बहुसंख्यक सिंहला और अल्पसंख्यक तमिलो के बीच २३ जुलाई, १९८३ से आरंभ हुआ गृहयुद्ध है। मुख्यतः यह श्रीलंकाई सरकार और अलगाववादी गुट लिट्टे के बीच लड़ा जाने वाला युद्ध है। ३० महीनों के सैन्य अभियान के बाद मई २००९ में श्रीलंकाई सरकार ने लिट्टे को परास्त कर दिया।
लगभग २५ वर्षों तक चले इस गृहयुद्ध में दोनों ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गए और यह युद्ध द्वीपीय राष्ट्र की अर्थव्यस्था और पर्यावरण के लिए घातक सिद्ध हुआ। लिट्टे द्वारा अपनाई गई युद्ध-नीतियों के चलते ३२ देशों ने इसे आतंकवादी गुटो की श्रेणी में रखा जिनमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोपीय संघ[3] के बहुत से सदस्य राष्ट्र और अन्य कई देश हैं। एक-चौथाई सदी तक चले इस जातीय संघर्ष में सरकारी आँकड़ों के अनुसार ही लगभग ८०,००० लोग मारे गए हैं।
संघर्ष के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- "सिंहला केवल" अधिनियम - इस कानून के अनुसार देश की राष्ट्रभाषा सिंहला ही होगी। इससे गैर-सिंहलियों को रोजगार मिलना लगभग असंभव हो गया। जो पहले से नौकरी में थे, उन्हें नौकरी से निकाला जाने लगा। प्रधानमंत्री एसडब्ल्यूआरडी भंडारनायके द्वारा यह कानून लाया गया था।
- शिक्षा का कथित मानकीकरण - इस कानून के अंतर्गत, विश्वविद्यालयों में तमिलों का प्रवेश असंभव हो गया। नौकरियों में भी गैर-सिंहलियों के लिए कोई काम नहीं बचा। उन्हें नौकरीयों से निकाला जाने लगा।
- तमिल यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट का गठन - टीयूएलएफ ने अधिकार के लिए सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया। बेरोजगार और बेकार युवकों ने हथियार उठा लिए। वामदल ने प्रारंभ में सांप्रदायिक संघर्ष का समर्थन नहीं किया। लेकिन बाद में, भाषा के मुद्दे पर वामदलों ने टीयूएलएफ का साथ दिया
- १९७४ में लिबरेशन टाईगर ऑफ तमिल ईलम का गठन।
- एलटीटीई को राजनीतिक समर्थन।
- एलटीटीई का राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिष्ठानों पर हमला।