प्र 16 प्रकृति ने हमे क्या क्या प्रदान किया है हिंदी
Answers
Explanation:
ने मानव को तरह तरह के उपहार दिए है। वायु, जल, प्रकाश, खनिज, पदार्थ, फलदार वृक्ष तथा औषधियों के काम आने वाले अनेक वनस्पतियां आदि। उन्हीं उपहारों में एक है बांस जो मानव के लिए सदियों से उपयोगी रहा है। बांस की उपयोगिता को देखते हुए प्रकृति ने उसे यह क्षमता भी प्रदान किया है वह स्वत: विकसित हो। उसे न तो पानी न ही खाद देने का जरूरत पड़ती है। एक बांस लगा देने पर आषाढ़ महीने में उससे निकलने वाली कोपलें स्वत: ही बंसवारी का रूप धारण कर लेती हैं।
बांस का शुद्ध रूप वंश है। मानव ने वंश वृक्ष, वंश वृद्धि, उच्च वंश आदि शब्द प्रकृति के इस अनूठी संतान बांस से ही लिया है जो मानव जीवन के अभिन्न सहयोगी के रूप में अतीत से ही अपनी सेवाएं अर्पित करता आ रहा है। उसने अपनी काया का रेशा रेशा मनुष्य की सेवा में अर्पित किया है। नगरीय जीवन से दूर प्रकृति के एकांत अंचल में रहने वालों के दैनिक जीवन की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति बांस द्वारा ही होती आ रही है। अतीत में खपरैल के मकानों, बैलगाड़ी, ढेका, ढेकुल, मचान सहित बच्चों के खिलौने आदि का निर्माण बांस द्वारा ही होता था।
बांस से निर्मित दऊरा, दऊरी, सुपली, डोलची, सूप, बेना आज भी प्रचलन में है। यह अलग बात है कि पूर्वापेक्षा आज इसके उपयोग में कमी आई है। यह बांस ही है जो प्रकृति की गोद में मनुष्य के लिए झोपड़ियां बनाने के काम आता है तो लाठी की भूमिका भी निभाता है। बांस से ही सोने के लिए बंसखट बनता जबकि अंतिम समय में अर्थी बन कर अंतिम साथ निभाता है। पूरा बांस ही नहीं उसका रेशा रेशा भी कागज बन कर मानव जाति को अर्पित है। एक समय ऐसा था जब सिकंदरपुर के बाहरी अंचल तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी बड़ी बंसवारियां हुआ करती थीं। जिनमें खड़े बांस आसमान से बातें करते थे।
बदलते परिवेश में अब यह बंसवारियां धीरे धीरे उजड़ती जा रही हैं। पूर्वापेक्षा बांसवारियों का अस्तित्व खत्म हो गया। जिस बांस ने हमारी गृहस्थी सजाई, गृहस्थी का प्रत्येक सामान दिया और अंतिम विदाई में भी साथ देता है। जिसने संगीत दिया, स्वरलहरी दिया और मध्य काल का रसमय अमर साहित्य दिया। प्रेम की मूर्ति श्रीकृष्ण दिया। क्या फाइबर और प्लास्टिक को औजार बनाकर उसका अंतिम संस्कार करके हम अपनी कृतघ्नता का परिचय नहीं दे रहे।
दुल्हन के दउरा में ही पड़ता डेग
शादी विवाह के अवसर पर माड़ों आदि के निर्माण में आज भी बांस प्रासंगिक बना हुआ है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बांस की उपयोगिता अतीत में रही है, वर्तमान में है तथा भविष्य में भी संभवतया रहेगी। आज की शादी के अवसर पर महत्वपूर्ण डाल बांस से ही बनता है। नव बधू का ससुराल में पहला कदम दऊरी में ही पड़ता है।
न बांस होता न बजती बांसुरी
साहित्य को सदियों तक जीवंत और रसमय बनाने का काम इसी बांस की पुत्री बांसुरी ने बखूबी किया है। कृष्ण की बांसुरी कौन नहीं जानता। शरदपूर्णिमा की रास लीला न होती तथा कदम्ब से लोग अपरिचित ही रहते। यही नहीं बांसुरी न होती तो समा में आज वंशीधर, मुरली धर के नाम नहीं चलते। दुबली पतली काया होकर भी आकाश की ऊंचाईयों को छू लेने की हिम्मत यदि किसी में है तो वह परोपकारी भाव में बांस में ही है।