प्र. 2. (इ) अपठित पद्यांश पढ़कर सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
हम विभिन्न हो गए विनाश में,
हम अभिन्न हो रहे विकास में,
एक श्रेय, प्रेम अब समान हो।
शुद्ध स्वार्थ कामनींद से जगें,
लोककर्म में महान सब लगें,
रक्त में उफान हो, उठान हो।
शोषित कोई कहीं न जन रहे,
पीड़न-अन्याय अब न मन सहें।
(1) आकृति पूर्ण कीजिए :
विभिन्न तथा अभिन्न होने की स्थितियाँ
विभिन्नता
अभिन्नता
लोगों से कवि की दो अपेक्षाएँ -
(2) उत्तर लिखिए:
विकास काल में सबको सुलभ हो
(3) अंतिम दो पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
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प्रस्तुत पद्यांश 'जनगीत' कविता से लिया गया है। इस गीत के रचयिता श्री सुमित्रानंदन पंत हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समाज के शोषण एवं उत्पीड़न को समाप्त कर आजाद व्यक्ति तथा संगठित रहने का संदेश दिया है।
कवि कहते हैं कि नए युग में समाज के प्रत्येक व्यक्ति को विकास करने करने की पूरी स्वतंत्रता होगी। समाज के लोगों में एकता की भावना रहेगी और वे संगठित रहेंगे। प्रत्येक व्यक्ति के गुणों का उचित सम्मान होगा। नए युग में सभी लोगों को न्याय मिलेगा। नए युग के नए नियम एवं कानून होगें।
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