प्र.2 निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर सप्रसंग भावार्थ लिखिए।
कबीर घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़े जब आँखि मैं,खरी दुहेली होइ ।।
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उड़ी पडै़ जब आँखि मैं, खरी दुहेली हुई।
प्रसंग :- इस दोहे में कवि ने घास के छोटे से तिनके का भी अपमान न करने की सलाह दी है। कबीरदास जी कहते हैं कि रास्ते में पड़ा हुआ घास का नन्हा सा टुकड़ा भी अपना विशेष अस्तित्व रखता है। मनुष्य को पैरों के नीचे रहने वाले दूसरे का भी अपमान नहीं करना चाहिए
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