प्र.22 निम्नलिखित काव्यांश की सन्दर्भ - प्रसंग सहित व्याख्या कीजि
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।।
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प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं , प्रेमी मिलै न कोइ ।
प्रेमी को प्रेमी मिलै , सब विष अमृत होइ ।2।
अर्थ :- एक सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी को किसी अन्य सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी की तलाश होती है। परन्तु ; कबीरदास जी के अनुसार इस संसार में एक सच्चा भक्त या ईश्वर प्रेमी का मिलना बहुत कठिन है । यदि संयोग से ऎसा संभव हो जाय तो दोनों भक्तों या ईश्वर - प्रेमियों के समस्त विकार मिट जाते हैं ।
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