Hindi, asked by bhaishavpatel, 3 months ago

प्र.26 जो साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषधि का भण्डार है, जो
साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्पीडितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है,
उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो गति नहीं करती वह अज्ञानांधकार की गर्त
में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है। अतएवं समर्थ होकर भी
जो मनुष्य इतने महत्त्वशाली साहित्य की सेवा और श्रीवृद्धि नहीं करता अथवा उससे
अनुराग नहीं रखता वह समाजद्रोही है, वह देशद्रोही है, वह राष्ट्रद्रोही है।
प्रश्न
(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) समाजद्रोही एवं देशद्रोही कौन है?
(3) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।​

Answers

Answered by bhavanisrajput70
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Answer:

जो साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषधि का भण्डार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्पीड़ितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो गति नहीं करती वह अज्ञानांधकार की गर्त में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है। अतएव समर्थ होकर भी जो मनुष्य इतने महत्वशाली साहित्य की सेवा और श्री वृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता वह समाज द्रोही है, वह देश द्रोही है, वह जाति द्रोही है।

प्रश्न-

(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।

(2) संजीवनी औषधि का भण्डार क्या है?

(3) साहित्य के संवर्धन की चेष्टा कब अपना अस्तित्व खो बैठती है?

(4) समाजद्रोही एवं देशद्रोही कौन है?

(5) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।

उत्तर-

(1) शीर्षक ‘सत्साहित्य की महत्ता’।

(2) संजीवनी औषधि का भण्डार प्रेरक साहित्य है।

(3) साहित्य के संवर्धन की चेष्टा गतिहीन होने पर अपना अस्तित्व खो बैठती है।

(4) महत्वशाली साहित्य की सेवा और श्री वृद्धि न करने वाला मनुष्य समाजद्रोही एवं देशद्रोही है।

(5) सारांश-मुर्दे में जान डालने वाले, पतितों एवं उत्पीड़ितों को उन्नत बनाने वाले साहित्य के उत्पादन एवं संवर्धन की चेष्टा अनिवार्य है। जो सामर्थ्यवान मनुष्य श्रेष्ठ साहित्य की सेवा नहीं करता है वह राष्ट्र विरोधी है।

Answered by RvChaudharY50
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दिया हुआ गद्यांश :- जो साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषधि का भण्डार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्पीड़ितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो गति नहीं करती वह अज्ञानांधकार की गर्त में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है। अतएव समर्थ होकर भी जो मनुष्य इतने महत्वशाली साहित्य की सेवा और श्री वृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता वह समाज द्रोही है, वह देश द्रोही है, वह जाति द्रोही है।

प्रश्न (1) :- उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ?

उतर :- उपर्युक्त गद्यांश के लिए उचित शीर्षक है :- ‘सत्साहित्य की महत्ता’।

  • अर्थात साहित्य का महत्व l

प्रश्न (2) :- संजीवनी औषधि का भण्डार क्या है ?

उतर :- साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवनी औषधि का भण्डार है l

प्रश्न (3) :- साहित्य के संवर्धन की चेष्टा कब अपना अस्तित्व खो बैठती है ?

उतर :- साहित्य के संवर्धन की चेष्टा गतिहीन हो कर अज्ञान के अंधकार में पड़ कर अपना अस्तित्व खो बैठती है ।

प्रश्न (4) :- समाजद्रोही एवं देशद्रोही कौन है ?

उतर :- जो मनुष्य साहित्य की सेवा और श्री वृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता , वह समाजद्रोही एवं देशद्रोही है ।

प्रश्न (5) :- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए ?

उतर :- मुर्दे में जान डालने वाले, पतितों एवं उत्पीड़ितों को उन्नत बनाने वाले साहित्य के उत्पादन एवं संवर्धन की चेष्टा अनिवार्य है । जो मनुष्य साहित्य की सेवा नहीं करता है वह राष्ट्र विरोधी है । अत, हमें साहित्य को विशेष महत्व देना चाहिए l

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