प्र:-3" मुझसे मिलने को कौन विकल ? मैं होऊँ किसके हित चंचल ?यह प्रशन शिथील करता पद को, भरता उर में विहावलता है इन पंक्तियों में कौन सा भाव है
Answers
Answer:
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं-
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे--
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?--
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
Explanation:
please follow me
Answer:
दिए गए प्रश्न-" मुझसे मिलने को कौन विकल ? मैं होऊँ किसके हित चंचल ?यह प्रशन शिथील करता पद को, भरता उर में विहावलता है इन पंक्तियों में कौन सा भाव है" का उत्तर है-
Explanation:
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विहवलता है |
कवि हरिवंश राय बच्चन कहते हैं कि वह इस संसार में अकेला है, इस कारण , किसी के मन में उससे मिलने के लिए व्याकुलता नहीं है। उसकी उत्कंठा से प्रतीक्षा करता हो कोई ऐसा नहीं । इसलिए कवि किसके लिए जल्दी-जल्दी घर जाए। इसी कारण कवि के कदमों में शिथिलता यानी थकावट आ गई है।
कवि पुनः आत्मपरिचय देता हुआ कहता है कि -मेरा इस दुनिया में यद्यपि कोई नहीं फिर भी न जाने कौन मुझसे मिलने के लिए उत्सुक है। यही प्रश्न कवि में बार-बार उत्सुक कर देता है। मेरे पाँवों में शिथिलता और मन में व्याकुलता भर देता है।