प्र० - आप किसकी भक्ति करने में विश्वास रखते हैं और क्यों?
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भक्ति भी साधक को पूर्ण स्वाधीनता, पवित्रता, एकत्वभावना तथा प्रभुप्राप्ति जैसे मधुर फल देती है। प्रभुप्राप्ति का अर्थ जीव की समाप्ति नहीं है, सयुजा और सखाभाव से प्रभु में अवस्थित होकर आनन्द का उपभोग करना है। आचार्यं रामानुज, मध्व, निम्बार्क आदि का मत यही है।
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