प्र. अधोलिखितपदेभ्य: आगमवर्णान्, आदेशवर्णान् वा स्पष्टीकृत्य पृथक्
कुरुत-
यथा-वृक्ष + छाया - वृक्षच्छाया - च् (आगम:)
यदि + अपि - यद्यपि- य (आदेश:)
i) इति+ आदि - इत्यादि (..................)
ii) तरु। छाया - तरुच्छाया-(..................)
iii) अनु + छेदः - अनुच्छेदः - (..................)
iv) अनु। इच्छति - अन्विच्छति (..................)
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आगमवर्णान्, आदेशवर्णान् वा स्पष्टीकृत्य पृथकरण
(i) इति+ आदि - इत्यादि य (आदेश:)
- किसी वर्ण काे हटाकर जब कोई दसूरा वर्ण उसके स्थान पर शत्रु की भाँति आ बैठता है तो वह आदेश कहलाता है।
यहाँ 'अ ' के स्थान पर 'य' आदेश हुआ है।
(ii) तरु। छाया - तरुच्छाया- च् (आगम:)
(iii) अनु + छेदः - अनुच्छेदः - च् (आगम:)
- किसी वर्ण के साथ जब दसूरा वर्ण मित्रवत आकर बैठकर उससे सयंक्तु हो जाता है, तब वह आगम कहलाता है।
यहाँ च् का आगम हुआ है।
(iv) अनु। इच्छति - अन्विच्छति ( उ + इ = व)
'उ' + 'इ' में सं हिता (अत्यन्त समीपता) के कारण सन्धि कार्य करने से अन्विच्छति पद बना है।
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