पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कही बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिठ्ठी-पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे के इकलौते हाईस्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मान लीजिए मोतीलाल जी को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे।
प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर सरकारी कार्यालयों की कार्यशैली के बारे में आपकी क्या धारणा बनती है?
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पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज़्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही श्वसर देने का निर्णय किया होगा और ...
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