History, asked by sanj2893, 8 months ago

प्राचीन बंगाल के जिस अंचल और नदी का नाम द्वितीय अध्याय में पढ़ाया गया था उसकी तालिका
तैयार कीजिए।​

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Answered by Anonymous
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Answer:

पश्चिम बंगाल में गंगा नदी का मूल प्रवाह कचरे के ढेर, गैरकानूनी इमारतों और बड़ी मेट्रो लाइनों में डूब गया है।

अनेक स्थानों से प्राचीन गंगा, जो लगभग 75 किमी लम्बी राष्ट्रीय गंगा नदी का मूल प्रवाह है, कई स्थानों से विलुप्त चुकी है। तीन शताब्दी पूर्व यह बंगाल की खाड़ी की ओर गंगा की मुख्य प्रवाह था। आज यह प्रवाह सीवर, कचरा और मेट्रो रेल नेटवर्क के नीचे दफन हो गया है और यह अतिक्रमण व्यक्तिगत तालाबों और घरों में तबदील हो गया है।

अनेक स्थानों से प्राचीन गंगा, जो लगभग 75 किमी लम्बी राष्ट्रीय गंगा नदी का मूल प्रवाह है, कई स्थानों से विलुप्त चुकी है। तीन शताब्दी पूर्व यह बंगाल की खाड़ी की ओर गंगा की मुख्य प्रवाह था। आज यह प्रवाह सीवर, कचरा और मेट्रो रेल नेटवर्क के नीचे दफन हो गया है और यह अतिक्रमण व्यक्तिगत तालाबों और घरों में तबदील हो गया है।पिछले तीन दशक में गंगा का विनाश तेजी से हुआ है और इस दौरान लगभग 200 करोड़ रुपये इसके पुनर्जीवन में खर्च किए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रोजेक्ट जिसकी राशि 600 करोड़ रुपये थी, जिसे राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्रोजेक्ट के अंर्तगत विश्व बैंक, कोलकाता नगर निगम को आदि गंगा के जल प्रदूषण में कमी लाने के लिए फण्ड देने की बात कर रहा था। हालांकि यह प्रोजेक्ट प्रारम्भ होने से पहले ही अपनी समय सीमा से काफी पीछे था।

वास्तविक गंगा

वास्तविक गंगाअनेक प्राचीन लेखों एवं मानचित्रों के अनुसार उस कालचक्र में आदि (वास्तविक) गंगा नदी की मुख्य धारा थी और जिसकी वजह से 17वीं शताब्दी के अंतिम दशक में कोलकाता ब्रिटिश काल का मुख्य बंदरगाह बना। यह प्रसिद्ध कालीघाट मंदिर के पीछे से (जहां आज सीवर है) प्रवाहित होते हुए गरिया के माध्यम से गंगा सागर से पहले समाप्त हो जाती थी, यहीं पर गंगा का बंगाल की खाड़ी से संगम होता है।

वास्तविक गंगाअनेक प्राचीन लेखों एवं मानचित्रों के अनुसार उस कालचक्र में आदि (वास्तविक) गंगा नदी की मुख्य धारा थी और जिसकी वजह से 17वीं शताब्दी के अंतिम दशक में कोलकाता ब्रिटिश काल का मुख्य बंदरगाह बना। यह प्रसिद्ध कालीघाट मंदिर के पीछे से (जहां आज सीवर है) प्रवाहित होते हुए गरिया के माध्यम से गंगा सागर से पहले समाप्त हो जाती थी, यहीं पर गंगा का बंगाल की खाड़ी से संगम होता है।लगभग 1750 में हावड़ा, संकरैल के निकट सरस्वती नदी के निचले हिस्से और हुगली नदी से जोड़ने के लिए गंगा की धारा को काट दिया गया। और इसी कारण से ज्यादातर पानी का प्रवाह पश्चिमोत्तर हो गया और हुगली, गंगा की मुख्य धारा बन गई, जो आज भी है।

वास्तविक गंगाअनेक प्राचीन लेखों एवं मानचित्रों के अनुसार उस कालचक्र में आदि (वास्तविक) गंगा नदी की मुख्य धारा थी और जिसकी वजह से 17वीं शताब्दी के अंतिम दशक में कोलकाता ब्रिटिश काल का मुख्य बंदरगाह बना। यह प्रसिद्ध कालीघाट मंदिर के पीछे से (जहां आज सीवर है) प्रवाहित होते हुए गरिया के माध्यम से गंगा सागर से पहले समाप्त हो जाती थी, यहीं पर गंगा का बंगाल की खाड़ी से संगम होता है।लगभग 1750 में हावड़ा, संकरैल के निकट सरस्वती नदी के निचले हिस्से और हुगली नदी से जोड़ने के लिए गंगा की धारा को काट दिया गया। और इसी कारण से ज्यादातर पानी का प्रवाह पश्चिमोत्तर हो गया और हुगली, गंगा की मुख्य धारा बन गई, जो आज भी है।1770 के दशक में आदि गंगा दूर जाने लगी, तब विलियम टोली 15 किमी गरिया से समुक्पोता तक की धारा के निष्कर्षण को देखकर हैरान थे और उन्होने आदि गंगा को सुन्दरवन की ओर प्रवाहित होने वाली विद्याधरी नदी से जोड़ दिया। और आज इसी वजह से यह धारा टोलीनाला नाम से जाना जाता है।

वास्तविक गंगाअनेक प्राचीन लेखों एवं मानचित्रों के अनुसार उस कालचक्र में आदि (वास्तविक) गंगा नदी की मुख्य धारा थी और जिसकी वजह से 17वीं शताब्दी के अंतिम दशक में कोलकाता ब्रिटिश काल का मुख्य बंदरगाह बना। यह प्रसिद्ध कालीघाट मंदिर के पीछे से (जहां आज सीवर है) प्रवाहित होते हुए गरिया के माध्यम से गंगा सागर से पहले समाप्त हो जाती थी, यहीं पर गंगा का बंगाल की खाड़ी से संगम होता है।लगभग 1750 में हावड़ा, संकरैल के निकट सरस्वती नदी के निचले हिस्से और हुगली नदी से जोड़ने के लिए गंगा की धारा को काट दिया गया। और इसी कारण से ज्यादातर पानी का प्रवाह पश्चिमोत्तर हो गया और हुगली, गंगा की मुख्य धारा बन गई, जो आज भी है।1770 के दशक में आदि गंगा दूर जाने लगी, तब विलियम टोली 15 किमी गरिया से समुक्पोता तक की धारा के निष्कर्षण को देखकर हैरान थे और उन्होने आदि गंगा को सुन्दरवन की ओर प्रवाहित होने वाली विद्याधरी नदी से जोड़ दिया। और आज इसी वजह से यह धारा टोलीनाला नाम से जाना जाता है।पहले जो नदी सुन्दवन के किनारे बोराल, राजपुर, हरीनवी और बरूईपुर के माध्यम से प्रवाहित होती थी, उसका तेजी से प्रवाह अपरुद्ध हो रहा था। हालांकि यह 1940 के दशक में काफी अच्छा गैर-मशीनीकृत नावों के माध्यम से माल यातायात का मार्ग था। आदि गंगा के लिए अपनी मृत्यु से पहले 2005 तक लगातार संघर्ष करने वाले रेबाती रंजन भट्टाचार्य ने लिखा है कि मेरे बचपन 1940 में भी यह काफी बड़ी नदी थी और नियमित रूप से माल परिवहन के लिए प्रयोग की जाती थी।

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