Hindi, asked by yashpal3003, 10 months ago

प्राचीन भारत मे भौगौलिक विचारो का विकाश

Answers

Answered by bhatiamona
2

Answer:

प्राचीन भारत में भौगोलिक ज्ञान का विकास

प्राचीन भारत में उस समय का भूगोल एक क्रमबद्ध विज्ञान के रूप में विकसित हो चुका था। उस कालखंड के अनेक ग्रंथों एवं शिलालेखों से हमें उस समय के भौगोलिक ज्ञान के बारे में पता चलता है। सिंधु घाटी की सभ्यता का काल समय 4000 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व तक का रहा है। इस कालखंड में भारत वासियों ने कृषि, जलवायु, खनिज, व्यापार आदि के बारे में अच्छा खासा ज्ञान हासिल कर लिया था।उनकी नगरीय व्यवस्था बड़ी उत्कृष्ट थी और एक योजनाबद्ध तरीके से नगरों का विकास होता था। उस काल में भौतिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, सामाजिक भूगोल, कृषि भूगोल, परिवहन भूगोल, औद्योगिक भूगोल, खगोलीय भूगोल का विकास अपने उत्कृष्ट शिखर पर था।

ऋग्वेद में ऐसे अनेक मंत्र है जिससे आर्यों के भौगोलिक ज्ञान का पता चलता है। रामायण और महाभारत काल के महा ग्रंथों से भी उसमें की भौगोलिक ज्ञान की पुष्टि होती है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मनुस्मृति आदि ग्रंथों में विज्ञान का उल्लेख मिलता है। सम्राट अशोक का काल तथा गुप्त साम्राज्य काल के ग्रंथों से भी भारत के भौगोलिक ज्ञान और विचार की पुष्टि होती है। वराहमिहिर के समय में खगोलीय विज्ञान ने बहुत अधिक विकास किया था।

वेदों में भारत भौतिक भूगोल से संबंधित ज्वालामुखी भूकंप, आदि क्रियाओं का वर्णन मिलता है। पर्वत, पठार, मैदान, जलप्रपात, नदियों, घाटियों का वैदिक साहित्य में मिलता है। इसके अतिरिक्त भूगोल, विज्ञान एवं प्रादेशिक भूगोल के बारे में पूर्ण जानकारी मिलती है।

अतः हम संक्षेप में कह सकते हैं कि प्राचीन काल में भौगोलिक ज्ञान अपने उच्चतम शिखर पर था। उस कालखंड में पृथ्वी को 7 भागों में विभाजित किया गया था जिन्हें सात महाद्वीप कहते थे... यह सातों महाद्वीप के नाम इस प्रकार थे... पुष्कर द्वीप, शक द्वीप, जंबू द्वीप, कुश द्वीप, शाल्मली द्वीप, प्लक्ष द्वीप, क्रोंच द्वीप आदि।

Similar questions