प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन के अनुसार राज्य के सप्तांग कोन कौन से है
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प्राचीन भारतीय चिंतन में राज्य को सप्तांग राज्य के रूप में परिभाषित किया गया है, शुक्र भी इसका अपवाद नहीं हैं। राज्य सात अंगो से बना सावयवी है, यह स्वामी, अमात्य, मित्र, कोष, जनपद्, दुर्ग, & दण्ड (सेना से बना) है।
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- "प्राचीन भारतीय विचारक, महान कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ तथा मगध राज्य के भाग्य-निर्माता कौटिल्य का नाम ‘अर्थशास्त्रा के प्रणेता के रूप में प्रसिद्ध है। राज्य के तत्त्व : सप्तांग सिद्धांत- कौटिल्य ने पाश्चात्य राजनीतिक चिन्तकों द्वारा प्रतिपादित राज्य के चार आवश्यक तत्त्वाें-भूमि, जनसंख्या, सरकार व सभ्प्रभुता का विवरण न देकर राज्य के सात तत्त्वों का विवेचन किया है।
- "स्वामी (राजा)" शीर्ष के तुल्य है। वह बुद्धिमान, कुलीन, धैर्यवान, साहसी, दूरदर्शी, संयमी, तथा युद्ध-कला में "निपुण" होना चाहिए।
- "अमात्य (मंत्राी)" राज्य की "आँखे" हैं। इस शब्द का प्रयोग सचिव, मंत्राीगण, प्रशासनिक व न्यायिक पदाधिकारियों केलिए भी किया है। वे अपने ही देश के जन्मजात नागरिक, उच्च कुल से सम्बंधित, योग्य, चरित्रावान, विभिन्न कलाओं में "निपुण तथा सवामीभक्त" होने चाहिए।
- "जनपद" राज्य की "जंघाएँ अथवा पैर" हैं, जिन पर राज्य का असितत्व टिका है। उपजाऊ, प्राकृतिक संसाधनों से भरा, नदियों, पशुधन, वन्यप्रदेश तथा प्रधान भूमि तालाबों को उपयुक्त बताया है। जनसंख्या में किसान, उद्यमी और अर्ध-उत्पादन में योगदान देने वाले विषय शामिल हैं। लोगों को राजा के आदेशों के प्रति निष्ठावान, परिश्रमी और आज्ञाकारी होना चाहिए।
- दुर्ग राज्य की भुजाएँ हैं, जिनका कार्य राज्य की रक्षा करना है। राजा को ऐसे किलों का निर्माण करना चाहिए, जो आक्रामक युद्ध और रक्षात्मक दृष्टिकोण से लाभकारी हों। कौटिल्य ने दुगो-वैदिक (जल) दुर्ग, वनदुर्गा (जंगली) और धनवन (रेगिस्तान/मरुस्थलीय) दुर्ग, पर्वत (पहाड़ी) किला के चार प्रकारों का वर्णन किया है।
- "कोष" राजा के मुख के समान है। कोष को राज्य का सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना गया है, क्योंकि राज्य के संचालन के दौरान और युद्ध के दौरान धन की आवश्यकता होती है। कोष इतना प्रचुर होना चाहिए कि यह किसी भी आपदा का सामना करने में सहायक हो। कोष में धन-वृद्धि बढ़ाने के लिए कौटिल्य ने कई उपाय किए हैं। वह राजा को संकट में राजस्व पाने के लिए अनुचित साधनों को अपनाने की सलाह भी देता है।
- "दण्ड" राज्य का मसितष्क हैं। प्रजा तथा शत्राु पर नियंत्राण करने के लिए बल अथवा सेना अत्यधिक आवश्यक तत्त्व है। कौटिल्य ने सेना के छ: प्रकार बताए हैं। जैसे- वेतन पर नियुक्त या किराए के सैनिक, वंशानुगत सेना, मित्रा राज्य के सैनिक, सैन्य निगमों के सैनिक, आदिवासीे सैनिक, तथा शत्राु राज्य के सैनिक। वैश्यों और शूद्रों को भी संकट के समय सेना में भर्ती किया जा सकता है। सैनिकों को धैर्यवान, कुशल, युद्ध-कुशल और देशभक्त होना चाहिए। राजा को सैनिकों की सुख-सुविधाओं का भी ध्यान रखना चाहिए। कौटिल्य ने तपस्या के चार लक्ष्य बताए हैं - अप्राप्य वस्तु को प्राप्त करना, प्राप्त वस्तु की रक्षा करना, संरक्षित वस्तु को संरक्षित करना और वस्तु को उचित रूप में वितरित करना।
- "मित्रा" राज्य का कान है। राजा का मित्र मित्रा उसे शांति और युद्ध दोनों में मदद करता है। इस संबंध में, कौटिल्य सहज (आदर्श) और 4 ट्रिम मित्र के बीच अंतर करता है। सहज त्रिमित्र 4 ट्रिम मित्रा से बेहतर है। जिस राजा के मित्रा लोभी, कामी तथा कायर होते हैं, उसका विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है।
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