प्राचीन शिक्षा का महत्व लिखिए।
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व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास में उसके चारित्रिक विकास तथा आध्यात्मिक विकास का उद्देश्य ही सर्वप्रमुख था । प्राचीन भारतीय शिक्षा ने अपने देश में ही नहीं, समूचे विश्व में ऐसा उच्चकोटि का आदर्श स्थापित किया, जिससे न केवल व्यक्ति का व्यक्तित्व समुन्नत हुआ, अपितु सम्पूर्ण देश और समाज का नाम ऊंचा हुआ ।
2. ऋग्वैदिककालीन शिक्षा:
ऋग्वैदिक काल में नैतिक आदर्शो पर अत्यन्त बल दिया गया है । चरित्र की शुद्धता के लिए ऋग्वेद काल में विशेष ध्यान दिया जाता था । असत्य एवं पापाचार को घूणित समझा जाता था । शिक्षा का उद्देश्य सभ्यता और संस्कृति का हस्तान्तरण भी था ।
ब्राह्मण, अर्थात् गुरा विद्यार्थियों को मौखिक शिक्षा देते थे । वैदिक मन्त्रों का पाठ ही ज्ञानार्जन का माध्यम था । इससे विद्यार्थी आत्मशिक्षण भी प्राप्त करते थे । इस युग की शिक्षा का मूल उद्देश्य ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करके मोक्ष प्राप्त करना था ।
अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चतुवर्ग की प्राप्ति मुख्य ध्येय था । स्वाध्याय एवं मनन की इस शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थी बहुधा उपनयन संस्कार के बाद गुरु के आश्रम में ही रहने जाते थे । उनका आपसी सम्बन्ध पिता-पुत्र-सा होता था । गुरु ज्ञान-विज्ञान के पारंगत मर्मज्ञ विद्वान् थे । वे समाज के पथप्रदर्शक थे ।