पैराग्राफ अबाउट कंचनजंगा इन संस्कृत
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Explanation:
कंचनजंघा (नेपाली:कंचनजंघा Kanchanjaŋghā), (लिम्बू: सेवालुंगमा) विश्व की तीसरी सबसे ऊँची पर्वत चोटी है, यह सिक्किम के उत्तर पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है।.[3][1][4]
कंचनजंघा
Kanchenjunga from Tiger Hills.JPG
दार्जिलिंग की टाइगर पहाड़ी से कंचनजंघा का दृश्य
उच्चतम बिंदु
ऊँचाई
8,586 मी॰ (28,169 फीट) [1]
तीसरा स्थान
उदग्रता
3,922 मी॰ (12,867 फीट) [2]
Ranked 29th
एकाकी अवस्थिति
124 कि॰मी॰ (407,000 फीट) Edit this on Wikidata
सूचीयन
आठ हज़ारी
अल्ट्रा
निर्देशांक
27°42′09″N 88°08′48″E / 27.70250°N 88.14667°E [2]
भूगोल
कंचनजंघा की सिक्किम के मानचित्र पर अवस्थितिकंचनजंघाकंचनजंघा
कंचनजंघा की भौगोलिक अवस्थिति
सिक्किम के मानचित्र पर
प्रदेश संख्या १ के मानचित्र पर
एशिया के मानचित्र पर
सभी दिखायें
स्थान
ताप्लेजुंग जिला, नेपाल;
सिक्किम, भारत[2]
मातृ श्रेणी
हिमालय
आरोहण
प्रथम आरोहण
25 मई 1955 by
जोए ब्राउन एवं जॉर्ज बैंड
(पहला शीतकालीन आरोहण 11 जनवरी 1986 Jerzy Kukuczka एवं Krzysztof Wielicki)
सरलतम मार्ग
हिमानी/बर्फ/हिम आरोहण
नाम की उत्पत्ति संपादित करें
कंचनजंघा नाम की उत्पत्ति तिब्बती मूल के चार शब्दों से हुयी है, जिन्हें आमतौर पर कांग-छेन-दजों-ंगा या यांग-छेन-दजो-ंगा लिखा जाता है। सिक्किम में इसका अर्थ विशाल हिम की पाँच निधियाँ लगाया जाता है। नेपाल में यह कुंभकरन लंगूर कहलाता है।[5]
भौगोलिक स्थिति संपादित करें
यह विश्व तीसरा सबसे ऊंचा पहाड़ है। इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है। यह दार्जिलिंग से 74 कि.मी. उत्तर -पश्चिमोत्तर में स्थित है। साथ ही यह सिक्किम व नेपाल की सीमा को छूने वाले भारतीय प्रदेश में हिमालय पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा है। कंचनजंगा पर्वत का आकार एक विशालकाय सलीब के रूप में है, जिसकी भुजाएँ उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में स्थित है। अलग-अलग खड़े शिखर अपने निकटवर्ती शिखर से चार मुख्य पर्वतीय कटकों द्वारा जुड़े हुये हैं, जिनसे होकर चार हिमनद बहते हैं - जेमु (पूर्वोत्तर), तालूंग (दक्षिण-पूर्व), यालुंग (दक्षिण-पश्चिम) और कंचनजंगा (पश्चिमोत्तर)।[6]
Name of peak Height (m) Height (ft) Location Prominence (m) Prominence (ft) Nearest Higher Neighbor Location (political)
Kangchenjunga Main[2] 8,586 28,169 27°42′11″N 88°08′52″E / 27.70306°N 88.14778°E 3,922 12,867 Mount Everest – South Summit North Sikkim, Sikkim, India / Taplejung, Province No. 1, Nepal
Kangchenjunga West (Yalung Kang)[7] 8,505 27,904 27°42′18″N 88°08′12″E / 27.70500°N 88.13667°E 135 443 Kangchenjunga Taplejung, Province No. 1, Nepal
Kangchenjunga Central[8] 8,482 27,828 27°41′46″N 88°09′04″E / 27.69611°N 88.15111°E 32 105 Kangchenjunga South North Sikkim, Sikkim, India / Taplejung, Province No. 1, Nepal
Kangchenjunga South[9] 8,494 27,867 27°41′30″N 88°09′15″E / 27.69167°N 88.15417°E 119 390 Kangchenjunga North Sikkim, Sikkim, India / Taplejung, Province No. 1, Nepal
Kangbachen[10] 7,903 25,928 27°42′42″N 88°06′30″E / 27.71167°N 88.10833°E 103 337 Kangchenjunga West Taplejung, Province No. 1, Nepal
पौराणिक कथाओं में संपादित करें
पौराणिक कथाओं और स्थानीय निवासियों के धार्मिक अनुष्ठानों में इस पर्वत का महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी ढलान किसी प्राथमिक सर्वेक्षण से सदियों पहले चरवाहों और व्यापारियों के लिए जानी-पहचानी थी।
इतिहास संपादित करें
कंचनजंगा का पहला मानचित्र 19 वीं शताब्दी के मध्य में एक विद्वान अन्वेषणकर्ता रीनजिन नांगयाल ने इसका परिपथात्मक मानचित्र तैयार किया था। 1848 व 1849 में एक वनस्पतिशास्त्री सर जोजेफ हुकर इस क्षेत्र में आने वाले और इसका वर्णन करने वाले पहले यूरोपीय थे। 1899 में अन्वेषणकर्ता -पर्वतारोही डगलस फ्रेशफ़ील्ड ने इस पर्वत की परिक्रमा की। 1905 में एक एंग्लो-स्विस दल ने प्रस्तावित यालुंग घाटी मार्ग से जाने का प्रयास किया और इस अभियान में हिंसखलन होने से दल के चार सदस्यों की मृत्यु हो गयी। बाद में पर्वतारोहियों ने इस पर्वत समूह के अन्य हिस्सों की खोज की। 1929 और 1931 में पोल बोएर के नेतृत्व में एक बाबेरियाई अभियान दल ने जेमु की ओर से इसपर चढ़ाई का असफल प्रयास किया। 1930 में गुंटर वो डीहरेन फर्थ ने कंचनजंगा हिमनद की ओर से चढ़ने की कोशिश की। इन अन्वेषणों के दौरान 1931 में उस समय तक हासिल की गयी सर्वाधिक ऊंचाई 7,700 मीटर थी। इन अभियानों में से दो के दौरान घातक दुर्घटनाओं ने इस पर्वत को असमान्य रूप से खतरनाक और कठिन पर्वत का नाम दे दिया। इसके बाद 1954 तक इस पर चढ़ने का कोई प्रयास नहीं किया गया। फिर नेपाल स्थित यालुंग की ओर से इस पर ध्यान केन्द्रित किया गया। 1951,1953 और 1954 में गिलमोर लीवाइस की यालुंग यात्राओं के फलस्वरूप 1955 में रॉयल ज्योग्राफ़िकल सोसायटी और एलपाईं क्लब (लंदन) के तत्वावधान में चार्ल्स इवान के नेतृत्व में ब्रिटिश अभियान दल ने इस पर चढ़ने का प्रयास किया और वे सिक्किम के लोगों के धार्मिक विश्वासों और इच्छाओं का आदर कराते हुये मुख्य शिखर से कुछ कदम की दूरी पर ही रुक गए।