पैराग्राफ ऑन फ्रेंडशिप इन इंग्लिश नॉट मोर 150 वर्ड्स
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उत्तर:-
- मित्रता जीवन का एक खूबसूरत है अफसर है I यह किसी से भी हो सकती है और जब जो कोई भी यह करता है तो उसके सारे दुख गम दूर चले जाते हैं और सिर्फ सुखी आते हैं और जब सच्चे हो तो वह अपने मित्र को सुखी रखने के लिए वह खुद दुखी भी हो सकता है I उसका सारा दर्द गम खुद ले सकता है अपना सारा खुशी अपने मित्र को दे सकता है I अगर मित्रता सच्ची हो तो और हर किसी को अच्छे से निभाना चाहिए I अपने मतलब के लिए मित्रता नहीं करनी चाहिए I मित्रता करनी चाहिए ह्रदय से I संसार की सबसे बड़ी और सबसे खूबसूरत मित्रता है "कृष्ण और सुदामा की" I
कृष्ण-सुदामा की मित्रता:-
- कृष्ण-सुदामा की मित्रता बहुत प्रचलित है। सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। अपने बच्चों का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नहीं थे। सुदामा की पत्नी ने कहा, "हम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न ?" इतना बोलते-बोलते उसकी आँखों में आँसू आ गए। सुदामा को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने कहा, "क्या कर सकते हैं ? किसी के पास माँगने थोड़े ही जा सकते है।" पत्नी ने सुदामा से कहा, "आप कई बार कृष्ण की बात करते हो। आपकी उनके साथ बहुत मित्रता है ऐसा कहते हो। वे तो द्वारका के राजा हैं। वहाँ क्यों नहीं जाते ? जाइए न ! वहाँ कुछ भी माँगना नहीं पड़ेगा !"
- सुदामा को पत्नी की बात सही लगी। सुदामा ने द्वारका जाने का तय किया। पत्नी से कहा, "ठीक है, मैं कृष्ण के पास जाऊँगा। लेकिन उसके बच्चों के लिए क्या लेकर जाऊँ ?"सुदामा की पत्नी पड़ोस में से पोहे ले आई। उसे फटे हुए कपडे में बांधकर उसकी पोटली बनाई। सुदामा उस पोटली को लेकर द्वारका जाने के लिए निकल पड़े।
- द्वारका देखकर सुदामा तो दंग रह गए। पूरी नगरी सोने की थी। लोग बहुत सुखी थे। सुदामा पूछते-पूछते कृष्ण के महल तक पहुँचे। दरवान ने साधू जैसे लगनेवाले सुदामा से पूछा, "एय, यहाँ क्या काम है ?"
- सुदामा ने जवाब दिया, "मुझे कृष्ण से मिलना है। वह मेरा मित्र है। अंदर जाकर कहिए कि सुदामा आपसे मिलने आया है।" दरवान को सुदामा के वस्त्र देखकर हँसी आई। उसने जाकर कृष्ण को बताया। सुदामा का नाम सुनते ही कृष्ण खड़े हो गए ! और सुदामा से मिलने दौड़े । सभी आश्चर्य से देख रहे थे ! कहाँ राजा और कहाँ ये साधू ?
- कृष्ण सुदामा को महल में ले गए। सांदीपनी ऋषि के गुरुकुल के दिनों की यादें ताज़ा की। सुदामा कृष्ण की समृद्धि देखकर शर्मा गए। सुदामा पोहे की पोटली छुपाने लगे, लेकिन कृष्ण ने खिंच ली। कृष्ण ने उसमें से पोहे निकाले। और खाते हुए बोले, "ऐसा अमृत जैसा स्वाद मुझे और किसी में नहीं मिला।"
- बाद में दोनों खाना खाने बैठे। सोने की थाली में अच्छा भोजन परोसा गया। सुदामा का दिल भर आया। उन्हें याद आया कि घर पर बच्चों को पूरा पेट भर खाना भी नहीं मिलता है। सुदामा वहाँ दो दिन रहे। वे कृष्ण के पास कुछ माँग नहीं सके। तीसरे दिन वापस घर जाने के लिए निकले। कृष्ण सुदामा के गले लगे और थोड़ी दूर तक छोड़ने गए।
- घर जाते हुए सुदामा को विचार आया, "घर पर पत्नी पूछेगी कि क्या लाए ? तो क्या जवाब दूँगा ?"
- सुदामा घर पहुँचे। वहाँ उन्हें अपनी झोपड़ी नज़र ही नहीं आई ! उतने में ही एक सुंदर घर में से उनकी पत्नी बाहर आई। उसने सुंदर कपड़े पहने थे। पत्नी ने सुदामा से कहा, "देखा कृष्ण का प्रताप ! हमारी गरीबी चली गई कृष्ण ने हमारे सारे दुःख दूर कर दिए।" सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया। उनकी आँखों में खूशी के आँसू आ गए।
इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता चाहे किसी से भी हो चाहे गरीब से हो और अमीर से हो किसी से भी हो हमें मित्रता सच्चे हृदय से निभानी चाहिए I हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वह मेरे जैसा नहीं है या मेरे जैसा अमीर नहीं है आदि हमें देखनी चाहिए उस व्यक्ति का ह्रदय अच्छा है या बुरा है I तो दोस्तों सच्चे प्रेम में ऊँच या नीच नहीं देखी जाती और न ही अमीरी-गरीबी देखी जाती है। इसीलिए आज इतने युगों के बाद भी दुनिया कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को सच्चे मित्र प्रेम के प्रतीक के रूप में याद करती है।
जो भी मित्रता करता है वह हमेशा सुखी रहता है I
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