प्रा. ईश्वर भक्ति में आडंबर नहीं होना चाहिए। इस से आप क्या समझते हैं ?
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'मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं' के द्वारा कबीर ने आडंबर पूर्ण एवं दिखावे की भक्ति करने वालों पर व्यंग्य किया है। कवि कहना चाहता है कि ईश्वर की सच्ची भक्ति करने के लिए मन का केंद्रित होना आवश्यक है। हमारा मन यदि चारों दिशाओं में भटक रहा है और हम राम राम जप रहे हैं तो वह भक्ति सच्ची भक्ति नहीं है।
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यानी की हम दिखावा नहीं करना चाहिए ईश्वर को दिल से मानना चाहिए
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