पौरि के किंवार देत धरै सबै गारिदेत
साधुन को दोष देत प्राति न चहत हैं।
माँगते को ज्वाब देत, बात कहै रोयदेत,
लेत-देत भाज देत ऐसे निबहत है।
मागेहँ के बंद देत बारन की गाँठ देत
धोती की काँछ देत देतई रहत है।
ऐसे पैसबैई कहै, दाऊ, कछू देत नाहि
दाऊ जो आठो याम देतई रहत है। ras konsa h
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sorry.................
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हास्य रस
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