प्राकारा स्वण कुत में अकिचन किनु इतना
कर झा, फिर भी मदन
तिन चाल में लाऊं सजाकर
कर दृया स्वीकार हा वह समग गान
आर्पित प्रा अपित खत काका-का पातपित
चावा हूँ, देवा कोबी को कुछ भी हूँ
माल जब
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I can't understand your question and please follow me good night
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