प्राकृतिक आपदाएं पर कविता
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सुशील कुमार शर्मा
हाइकु 98
अकाल
सूखता जिस्म
धरती की दरारें
हत चेतन।
झुलसी दूब
पानी को निहारते
सूखे नयन।
ठूंठ से वृक्ष
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