प्राकृतिक आपदाओं पर सौ शब्दों का अनुच्छेद
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पर्यावरण को लगातार क्षति पहुंचने की वजह से पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त है और इसलिए हमें तत्काल इनसे बचाव के तरीकों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा। भारत और अन्य देश पूरी दुनिया में हो रहे पर्यावरण असंतुलन का मूल्य चुकाने को मजबूर हैं और इन देशों में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से जीवन और संपत्ति की व्यापक हानि हो रही है।
जागरूकता जरूरी
वैसे तो प्राकृतिक आपदाओं के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ रही है लेकिन वास्तविकता में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है और इस वजह से हालात नहीं बदल रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर ज्यादातर मौखिक रूप से चिंता का प्रदर्शन एवं बयानबाजी ही होती रही है। भारत में भी पर्यावरण असंतुलन बढ़ती हुई चिंता का विषय है और यहां भी पर्यावरण असंतुलन को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त ही साबित हो रहे हैं।
मानव निर्मित कारणों से बढ़ रहा है खतरा
मानव निर्मित कारणों से भी पर्यावरण का असंतुलन बढ़ रहा है। जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि की वजह से मानुष्यों की जरूरत बढ़ी हैं और उनमें उपभोक्तावादी प्रवृति बढ़ी है। इन दोनों ही वजहों से प्राकृतिक संसाधनों पर असर पड़ा है। पेड़ों को काटना, खनिज पदार्थों के लिए खानों का दुरुपयोग एवं वायुमंडलीय प्रदूषण पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं। प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करने में इन सभी कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
पानी की बढ़ती जरूरत लगातार भू-जल के स्तर को कम कर रही है और साथ ही औद्योगिक विषाक्त सॉल्वैंट्स को नदियों में बहाया जा रहा है जिससे हमारा जल दूषित हो रहा है। कारखानों और वाहनों से लगातार निकलता गंदा धुआं एवं ग्रीनहाउस गैस वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति अगर लगातार चलती रही तो पृथ्वी पर प्राणियों का जीवन दूभर हो जाएगा।
निष्कर्ष
प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सतत विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हरेक परियोजना के पर्यावरण संबंधी चिंताएं सभी विकास परियोजनाओं के केंद्र में होनी चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व चेतावनी के लिए उपग्रहों से मिलने वाले डाटा का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की आवश्यकता है। संवेदनशील क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए स्थायी तंत्र का विकास करना चाहिए।
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you need more bigger ???
how is it???
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मानव निर्मित कारणों से बढ़ रहा है खतरा
मानव निर्मित कारणों से भी पर्यावरण का असंतुलन बढ़ रहा है। जनसंख्या में हो रही बेतहाशा वृद्धि की वजह से मानुष्यों की जरूरत बढ़ी हैं और उनमें उपभोक्तावादी प्रवृति बढ़ी है। इन दोनों ही वजहों से प्राकृतिक संसाधनों पर असर पड़ा है। पेड़ों को काटना, खनिज पदार्थों के लिए खानों का दुरुपयोग एवं वायुमंडलीय प्रदूषण पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं। प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करने में इन सभी कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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निष्कर्ष
प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सतत विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हरेक परियोजना के पर्यावरण संबंधी चिंताएं सभी विकास परियोजनाओं के केंद्र में होनी चाहिए। प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व चेतावनी के लिए उपग्रहों से मिलने वाले डाटा का अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की आवश्यकता है। संवेदनशील क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए स्थायी तंत्र का विकास करना चाहिए।
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Lusfa:
shut up.
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