Geography, asked by jushikushwaha, 1 month ago

प्राकृतिक का ज्ञान पद्धति की को विकसित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कोई तीन उदाहरण देकर समझाइए​

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प्रकृतिवाद (Naturalism) पाश्चात्य दार्शनिक चिन्तन की वह विचारधारा है जो प्रकृति को मूल तत्त्व मानती है, इसी को इस बरह्माण्ड का कर्ता एवं उपादान (कारण) मानती है। यह वह 'विचार' या 'मान्यता' है कि विश्व में केवल प्राकृतिक नियम (या बल) ही कार्य करते हैं न कि कोई अतिप्राकृतिक या आध्यातिम नियम। अर्थात् प्राक्रितिक संसार के परे कुछ भी नहीं है। प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन आदि की सत्ता में विश्वास नहीं करते।

यूनानी दार्शनिक थेल्स का नाम सबसे पहले प्रकृतिवादियों में आता है जिसने इस सृष्टि की रचना जल से सिद्ध करने का प्रयास किया था। किन्तु स्वतन्त्र दर्शन के रूप में इसका बीजारोपण डिमोक्रीटस ने किया।

प्रकृतिवादी विचारक बुद्धि को विशेष महत्व देते हैं परन्तु उनका विचार है कि बुद्धि का कार्य केवल वाह्य परिस्थितियों तथा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी शक्ति से बाहर जन्म लेते हैं। इस प्रकार प्रकृतिवादी आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन इत्यादि की सत्ता में विश्वास नहीं करते हैं। प्रो. सोर्ले का विचार है कि प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसके अनुसार स्वाभाविक अथवा निर्माण की शक्ति मनुष्य के शरीर को नहीं दी जा सकती। प्रकृतिवाद सभ्यता की जटिलता की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप समाज के सम्मुख उपस्थित हुआ।

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Answered by Anonymous
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