Hindi, asked by rg725007, 6 hours ago

प्र:- कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंँढै़ बन माँहि।
का भाव स्पष्ट कीजिए।​

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Answered by Anonymous
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स्पष्टीकरण : संत कवि कहते हैं कि मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए इधर-उधर भटकता है, जब कि ईश्वर उसी के अन्दर या उसी के पास है। जैसे कि – कस्तूरी मृग की नाभि में ही है, पर मृग नहीं जानता और भ्रमित होकर सारे वन में उसे ढूँढ़ता फिरता है। इसी प्रकार घट-घट में राम समाया हुआ है, पर मानव उसे भ्रम के कारण देख नहीं पाता।

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