प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ। 21.
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प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।
- प्रेमी की तलाश में फिरता हूँ, कोई प्रेमी नहीं मिलता। प्रेमी मिल जाए तो सारा विष अमृत हो जाता है। मैं प्रभु के प्रेमी की तलाश में फिर रहा हूं लेकिन कोई प्रेमी नहीं मिल रहा है। यदि ईश्वर-प्रेमी को दूसरा ईश्वर-प्रेमी मिल जाए, तो काम-वासना रूपी विष अमृत में बदल जाता है।
- प्रेमी जब प्रेमी से मिलता है तो सारा विष अमृत हो जाता है। प्रेमी को पाना तो और भी कठिन है। यहाँ प्रेमी का अर्थ है भगवान जिसे भक्त प्रेमी रूप में सच्चे मन से पाने की कोशिश करता है। एक बार एक प्रेमी दूसरे प्रेमी से मिल जाए तो दुनिया की सारी कड़वाहट अमृत में बदल जाती है।
- कबीर अपने दोहों में हमारे पैरों के नीचे पड़ी घास तक की निंदा करने से इनकार करते हैं। कबीर के दोहों में 'घास' का विशेष अर्थ है। यहाँ घास दलितों का प्रतीक है। कबीर के दोहों का संदेश है कि कोई भी व्यक्ति या जीव कितना ही छोटा क्यों न हो, उसे तुच्छ समझकर उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।
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