प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ। 2। sakhi ka arth spast kiziye it is urgent plz do fast i will mark as brainlist who give the answer first
Answers
एक सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी को किसी अन्य सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी की तलाश होती है। परन्तु ; कबीरदास जी के अनुसार इस संसार में एक सच्चा भक्त या ईश्वर प्रेमी का मिलना बहुत कठिन है । यदि संयोग से ऎसा संभव हो जाय तो दोनों भक्तों या ईश्वर - प्रेमियों के समस्त विकार मिट जाते हैं ।
Explanation
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प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।
कबीर की साखी का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।
अर्थ : अपनी इस साखी के माध्यम से कबीर कहते हैं कि ईश्वर का प्रेमी बनकर में ईश्वर के दूसरे प्रेमी को ढूंढ रहा हूँ, लेकिन मुझे कोई भी ईश्वर का प्रेमी नहीं मिल रहा। यदि ईश्वर के प्रेमी को दूसरा ईश्वर प्रेमी मिल जाता है तो सारे विषय वासना रूपी विष अमृत में बदल जाता है। मन का सारा मैल मिट जाता है और ज्ञान का उदय होता है।
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मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ लिखिये।