प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।। संदर्भ प्रसंग लिखे
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कबीर दास जी प्रेम के महत्व को बताते हुए कहते हैं कि अनेक स्थानों पर प्रेमी, प्रेमी को ढूँढता-फिरता है किन्तु उसे प्रेम नहीं मिलता है । अर्थात सच्चा प्रेमी ही सच्चे भाव से अपने प्रेमी को ढूंढे तो आसानी से मिल सकता है और ईश्वर के मिलते ही दुःख, क्लेश, पीड़ा आदि समाप्त हो जाती है व मन अमृत के सामान शुद्ध व स्वच्छ हो जाता है ।
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