Hindi, asked by ujjwalkumar57, 1 year ago

प्रेम एक निस्वार्थ भावना है कथन के आधार पर 10 से 15 पंक्तियां लिखें

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Answered by AbsorbingMan
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                              प्रेम एक निस्वार्थ भावना है

जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम उससे कुछ चाहते नहीं है, बस प्रेम करते हैं। उसी में स्वयं को भुला देते हैं। प्रेम हमें किसी को मारने या किसी के लिए मरने को नहीं कहता है। हम बस उसी में स्वयं को रमा देते हैं।

इसके लिए आपको एक उदाहरण देते हैं- तुलसीदास जी राम भक्ति करते हुए जीवनयापन करते थे। उनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ था। वह अपनी पत्नी को बहुत प्रेम करते थे। एक दिन उनकी पत्नी मायके चली गई। पत्नी की याद में वह इतने दुखी हो गए कि आँधी और तुफानी रात में ही घर से निकल पड़े। नदी बरसात के कारण उफ़न रही थी। उन्हें उसका भी भय नहीं लगा वह उसी में कूद पड़े और पत्नी के मायके पहुँच गए। पत्नी के कमरे में उन्होंने दरवाज़े से प्रवेश न कर खिड़की के रास्ते से प्रवेश किया। पति को इस प्रकार आया देखकर पत्नी को बड़ा दुख हुआ। तुलसीदास रामभक्त और एक विद्वान ब्राह्मण थे। उनकी इस प्रकार की दशा देखकर वह चकित और क्रोधित हो गईं। उन्होंने तुलसीदास जी पर व्यंग्य कसा कि मुझ पर तुम्हारा जितना प्रेम है यदि उसका कुछ अंश भी भगवान राम पर होता, तो तुम इस भव सागर को पार कर जाते थे। इस प्रकार के वचन सुनकर तुलसीदास को ज्ञान हुआ कि वह क्या कर रहे थे और किसके पीछे पड़े हुए थे। वह पत्नी को छोड़ भगवान राम में रम गए। भगवान राम से उनका प्रेम वासना, मोह, लोभ, स्वार्थ से परे था।


Answered by vilnius
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प्रेम एक निस्वार्थ भावना।

Explanation:

प्रेम ढाई अक्षर से बना ऐसा शब्द है जिससे हर किसी व्यक्ति का जीवन बदल सकता है। प्रेम के कई स्वरुप होते हैं जैसे माता-पिता से संतान को मिलने वाला प्रेम, भाई बहन में प्रेम, दादा दादी से मिलने वाला प्रेम, दोस्तों के बीच प्रेम और प्रेमी प्रेमियों के बीच प्रेम आदि।

हम सब जीवन में किसी न किसी व्यक्ति से अवश्य प्रेम करते हैं चाहे वह हमारे माता-पिता हो यह हमारे दादा-दादी या हमारे सगे संबंधी। हम प्रेम करते समय कभी भी किसी भी प्रकार के स्वार्थ के बारे में नहीं सोचते हैं। यह एक भावना है जिसमें हम अपना सब कुछ त्याग दूसरे व्यक्ति के हृदय को अच्छा मानने लगते हैं।  

प्रेम में कभी भी स्वार्थ के लिए जगह नहीं होती है। प्रेम करते समय हम केवल उनके भले के बारे में सोचते हैं| प्रेम करते समय हम किसी भी व्यक्ति के जात-पात, धर्म आदि के बारे में नहीं सोचते हैं। प्रेम सदैव एक निस्वार्थ भावना ही है।

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यदि तुम पशु-पक्षियों की बोलियाँ समझ पाते तो  

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