"प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होई" काव्यांश में विष और अमृत किसका प्रतीक
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“प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होई”
कबीर द्वारा रचित दोहे की इन पंक्तियों में विष मानव के अंदर व्याप्त बुराइयों जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, असत्य, हिंसा आदि का प्रतीक है। जबकि अमृत ईश्वर की भक्ति के कारण मिलने वाले आनंद का प्रतीक है।
कबीर ने मनुष्य के अंदर व्याप्त बुराइयों जैसे झूठ बोलना. लालच करना. मोह-माया रखना. दूसरों का दिल दुखाना आदि को विष का प्रतीक माना है। वह ईश्वर की भक्ति को अमृत के समान मानते हैं, जिसके कारण जो आनंद प्राप्त होता है वह किसी अमृत के समान है।
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