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'प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होई ' काव्यांश में विष और अमृत किसका प्रतीक हैं।
अथवा
ललद्यद ने ईश्वर का वास कहाँ बनाया है? वाख के आधार पर स्पष्ट कीजिा
ਦੇਹਰ
Answers
Answer:
'प्रेमी को प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होई ' काव्यांश में विष और अमृत किसका प्रतीक हैं।
‘विष’ मानव मन में छिपे पापों, बुराइयों, दुर्भावनाओं तथा वासनाओं का प्रतीक है| कवि ने ‘अमृत’ का प्रयोग पुण्य, मुक्ति, सद्भावना, भक्ति आदि के प्रतीक के रूप में किया गया है|
Answer:
कबीर द्वारा रचित दोहों की इन पंक्तियों में 'विश' काम, क्रोध, लोभ, मोह, असत्य, हिंसा आदि बुराइयों का प्रतीक है, जबकि 'अमृत' उस आनंद का प्रतीक है जो ईश्वर की भक्ति से आता है। अर्थात् 'विष' मनुष्य में व्याप्त कुरीतियों का प्रतीक है और ईश्वर की भक्ति से जो आनंद मिलता है वह 'अमृत' है।
Explanation:
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से श्री कबीर जी ने बताया है कि जब मनुष्य सच्चे मन से ईश्वर को खोजता है तो मनुष्य के मन में विष या जो भी बुराइयां होती हैं, वे सब दूर हो जाती हैं और उस व्यक्ति के मन में। अमृत की तरह अच्छी आदतें, अच्छे गुण और अच्छी आदतें पैदा होती हैं।
#SPJ3