प्रेम-माधुरी
कूकै लगी कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि
धोए-धोए पात हिलि-हिलि सरसै लगे।
बोलै लगे दादुर मयूर लगे नाचै फेरि
देखि के सँजोगी-जन हिय हरसै लगे।।
हरी भई भूमि सीरी पवन चलन लागी
लखि 'हरिचंद' फेरि प्रान तरसै लगे।
फेरि झूमि-झूमि बरषा की रितु आई फेरि
बादर निगोरे झुकि झुकि बरसै लगे।।1।। phadyans ki vyakha kijiya
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please mark me branialist this padhyansh is about shri Krishna ji
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