प्रेम मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति इस कथन पर अपने विचार लिखिए
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इस पृथ्वी पर विद्यमान समस्त प्राणियों में मानव को श्रेष्ठ माना गया है । हमारे शास्त्रों के अनुसार आहार, निद्रा, भय, मैथुन जैसे कार्य पशु भी मनुष्य के समान करते हैं । परन्तु मनुष्य को ईश्वर ने अधिक विकसित मस्तिष्क प्रदान किया है । मनुष्य उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है ।
उसे मानव-धर्म का ज्ञान होता है । मानव-धर्म समस्त प्राणियों से प्रेम करने का संदेश देता है । मानव का यह प्रेम-भाव ही उसे अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाता है । बास्तव में मनुष्य के लिए प्रेम के कारण ही यह संसार सुंदर प्रतीत होता हे । मानव-प्रेम के अभाव में इस पृथ्वी पर जीवन व्यतीत करना मनुष्य के लिए दूभर है ।
वास्तव में मानव-जीवन प्रेम पर आधारित है । प्रेम ही मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा देता है, प्रेम ही उसे सुख-शांति प्रदान करता है और प्रेम के कारण ही मनुष्य में संघर्ष की क्षमता उत्पन्न होती है । मानव-प्रेम से परिवार बनता है, जिसमें परस्पर सुख-दुःख बांटे जाते हैं ।
परिवार से प्रेम के कारण ही मनुष्य परिवार की सुख-समृद्धि के लिए संघर्ष करता है । अपने परिवार की प्रतिष्ठा के लिए मनुष्य सत्य के मार्ग पर चलने का यथासम्भव प्रयत्न करता है । समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए वह अपना विशेष चरित्र-निर्माण करता है और यह परिवार से, मानव से प्रेम के कारण ही सम्भव होता है ।
इस सुंदर संसार में मानव-प्रेम केवल परिवार तक सीमित नहीं रहता । मनुष्य परिवार के अतिरिक्त अपनी जन्म-भूमि से भी प्रेम करता है, अपने मकान, भवन, खेत-खलीहानों से प्रेम करता है । वह अपने समाज से भी प्रेम करता है और समाज के उत्थान के लिए यथासम्भव प्रयत्न भी करता है मनुष्य अपने पालतू पशु-पक्षियों से भी प्रेम करता है और उनके पालन-पोषण के लिए निरन्तर प्रयास करता है ।
मानव को अपने राष्ट्र से भी प्रेम होता है । अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए वह अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे नहीं हटता । वास्तव में प्रेम मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाता है, जिस कारण वह अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है पशु-पक्षियों की जीवन-शैली सीमित होती है ।
उनके लिए केवल अपना भरण-पोषण अधिक महत्त्वपूर्ण होता है । एक कुत्ता अपने क्षेत्र में अन्य क्षेत्र के कुत्ते की उपस्थिति सहन नहीं करत परन्तु मानव-प्रेम भिन्न-भिन्न समाज, प्रान्त एवं राष्ट्र के लोगों को मिल-जुलकर रहना सिखाता है ।
हमारे देश में विभिन्न धर्म एवं सम्प्रदाय के लोग परस्पर मिल-जुलकर रहते हैं और एक-दूसरे के दुःख-दर्द दूर करने के लिए उत्साह से सहयोग देते हैं । यह प्रेम के कारण ही सम्भव हो सकता है । वास्तव में प्रेम मनुष्य को स्वार्थी बनने से रोकता है । प्रेम दुःखी, पीड़ित व्यक्तियों की सहायता के लिए प्रेरित करता है ।
प्रेम के कारण ही मानव-सेवा, समाज-सेवा का भाव उत्पन्न होता है और मानव-सेवा को ही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म माना जाता है । हमारे देश भारत में हजारों देशभक्तों ने देश को अँग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी । उनकी यह देश-सेवा वास्तव में उनके देश-प्रेम के कारण ही सम्भव हो सकी थी ।
महात्मा गाँधी ने देश-सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था । यह उनका देश के जन-जन से प्रेम ही था । वास्तव में प्रेम जन-जन को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है । अकेला व्यक्ति इस संसार में कुछ नहीं कर सकता । उसे पग-पग पर सहयोग की आवश्यकता पड़ती है । परस्पर सहयोग एवं सहायता से ही मानव-जाति प्रगति कर सकी है ।
आदिकाल से ही मनुष्य जो भी प्रगति करता आ रहा है, वह प्रेम एवं परस्पर सहयोग के कारण ही सम्भव हो सकी है । प्रेम के अभाव में मानव-जाति का विनाश ही हुआ है । प्रेम के स्थान पर ईर्ष्या और वैमनस्य के भाव ने मानव-जाति का अहित किया है ।
मानव-जन्म को अपना सौभाग्य मानकर हम सबका कर्तव्य है कि हम मानव-जाति की प्रगति में अपना सहयोग मानव-जाति की प्रगति के लिए मानव-प्रेम आवश्यक मानव-प्रेम के द्वारा समाज की समस्त समस्याओं का निव सम्भव है । मानव-प्रेम से ही खुशहाली बढ़ती है और यह संसार जीने योग्य बनता है । वास्तव में मानव-प्रेम ही मानव-जाति का आधार है ।
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