प्रेम विस्तार है और स्वार्थ संकुचन। निबंध
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Explanation:
Prem vistar hai aur swarth sankuchan isiliye Prem Jivan ka Siddhant Prem Karta Hai vah Jita hai jo swarthi hai mar raha isiliye Prem Ke Liye Prem karo Kyon Ki ekmatra Prem hi Jivan ka Siddhant vaise hi jaise ki Tumhe Jeene Ke Liye Sans chahie
Vivekananda ke dwara likhi Gai.
प्रॆम विस्तार है और स्वार्थ सन्कुचन है:
प्रेम की भावना एक ऐसी भावना है जिसके कारण मनुष्य ना केवल खुद से परंतु दूसरों से भी प्रेम करना सीखता है और दूसरों से भी लगाव रखता है। प्रेम के मार्ग के ज़रिए मनुष्य अपने जीवन के हर लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और यही कारण है की प्रेम की राह पर चलने से या प्रेम के मार्ग को अपनाने से एक व्यक्ति को जीवनभर कुछ ना कुछ नया सीखने को ज़रूर मिलता है, जिससे उसकी बुद्धि का और सोच का विस्तार होता है।
स्वार्थ वहीं दूसरी ओर एक ऐसी भावना है, जिसमें व्यक्ति किसी और के बारे में नहीं बल्कि खुद के बारे में ही सोचता है। एक स्वार्थी व्यक्ति अगर किसी और के भले की सोचेगा भी तो भी वह उस कार्य में खुद के लिए कोई ना कोई फायदा ज़रूर देखेगा। एक स्वार्थी व्यक्ति के लिए उसके जीवन में सबकुछ उसके इर्द-गिर्द ही रहता है।